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प्रेम-पंचमी

थी, जिससे वह अपनी रक्षा कर सकते। समझ गए, अंतिम समय आ गया। शत्रुओं ने इस तरह मेरे प्राण लेने की ठानी है। अच्छा है, जीवन के साथ इस विपत्ति का भी अंत हो जायगा।

एक क्षण में उनके सम्मुख एक आदमी आकर खड़ा हो गया। राजा साहब ने पूछा―“कौन है?” उत्तर मिला―“मैं हूँ, आपका सेवक।”

राजा―ओ हो, तुम हो कप्तान! मैं शंका में पड़ा हुआ था कि कही शत्रुओ ने मेरा वध करने के लिये कोई दूत न भेजा हो।

कप्तान―शत्रुओं ने कुछ और ही ठानी है। आज बादशाह सलामत की जान बचती नहीं नजर आती।

राजा―अरे! यह क्योंकर?

कप्तान―जब से आपको यहाँ नज़रबंद किया गया है, सारे राज्य में हाहाकार मचा हुआ है। स्वार्थी कर्मचारियों ने लूट मचा रक्खी है। अँगरेज़ों की खुदाई फिर रही है। जो जी में आता है, करते हैं; किसी की मजाल नहीं कि चूँ कर सके। इस एक महीने में शहर के सैकड़ों बड़े-बड़े रईस मिट गए। रोशनुद्दौला की बादशाही है। बाज़ारों का भाव चढ़ता जाता है। बाहर से व्यापारी लोग डर के मारे कोई जिस ही नहीं लाते। दूकानदारों से मनमानी रक़में महसूल के नाम पर वसूल की जा रही हैं। ग़ल्ले का भाव इतना चढ़ गया है कि कितने