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राज्य-भक्त

इससे तो यह कहीं अच्छा होता कि मैं कत्ल कर दिया गया होता। अपनी आँखों से अपने परिवार को दुर्गति तो न देखता। सुनता हूँ, पिताजी को सोने के लिये चटाई नहीं दी गई। न- जाने स्त्रियों पर कैसे-कैसे अत्याचार हो रहे होंगे। लेकिन इतना जानता हूँ कि प्यारी सुखदा अंत तक अपने सतीत्व की रक्षा करेगी; अन्यथा प्राण त्याग देगी। मुझे इन बेड़ियों की परवा नहीं। पर सुनता हूँ, लड़कों के पैरों में भी बेड़ियाँ डाली गई है। यह सब इसी कुटिल रोशनुद्दौला की शरारत है। जिसका जो चाहे, इस समय सता ले, कुचल ले; मुझे किसी से काई शिकायत नहीं। भगवान् से यही प्रार्थना है कि अब संसार से उठा ले। मुझे अपने जीवन में जो कुछ करना था, कर चुका, और उसका ख़ूब फल पा चुका। मेरे-जैसे आदमी के लिये संसार में स्थान नहीं है।

राजा साहब इन्ही विचारो में डूबे थे। सहसा उन्हें अपनी काल कोठरी की ओर किसी के आने की आहट मिली। रात बहुत जा चुकी थी। चारा आर सन्नाटा छाया था, और उस अंधकारमय सन्नाटे में किसी के पैरों की चाप स्पष्ट सुनाई देती थी। कोई बहुत पाँव दबा-दबाकर चला आ रहा था। राजा साहब का कलेजा धक-धक करने लगा। वह उठकर खड़े हो गए। हम निरस्त्र और प्रतिकार के लिये असमर्थ होने पर भी बैठे-बैठे वारों का निशाना बनना नहीं चाहते। खड़े हो जाना आत्म-रक्षा का अंतिम प्रयत्न है। कोठरी में ऐसी कोई वस्तु न