यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
भूमिका

संसार में जिस दिन दादी और उसके नाती-पोतों का आविष्कार हुआ, उसी दिन कहानी का भी जन्म हुआ। कहानियों का दादी और बच्चों के साथ अटूट संबध है। बच्चों को विना कहानी सुने नींद नहीं आती, और दादी को विना कहानी सुनाए चैन नहीं पड़ता। इसीलिये शायद कहानी का आदिम इतिहास अज्ञात। उसका सबसे प्रथम आभास हमें संसार के सभी देशों में प्रचलित दंत- कथाओं तथा धार्मिक साहित्य में मिलता है। बूढ़ी दादी के समान ही ये धार्मिक ग्रंथ भी अजान मानव-समाज को कहानियाँ सुना- सुनाकर सीधा रास्ता बतलाने का प्रयत्न किया करते हैं। हमारे देश के शास्त्र और पुराण, महाभारत और रामायण, सभी प्राचीन ग्रंथ कहानियो से भरे पड़े हैं। इन सब अनत कथाओं का एकमात्र उद्देश्य है अज्ञानी और अबोध मनुष्य-समाज को शिक्षित बनाना। कहानी का यह महत्व पूर्ण उपयोग हमारे देश में बहुत पहले से ही चला आया है। दादी की कहानियाँ भी प्राय इसी उद्देश्य को लेकर कही जाती थीं। क्योंकि बालकों की अपरिपक मनोवृत्तियों को सुमार्ग में प्रवृत्त करने के लिये कहानी ही सबसे उत्तम साधन माना जाता था। आज दिन भी भारतीय तथा पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली में कहानी को ही शिशु-शिक्षा का सर्वोत्तम माध्यम समझा जाता है। बालकों के लिये लिखी गई सभी पुस्तकें―गणित-जैसे रूखे विषय की भी―कहानियों से भरी रहती हैं। मनोरंजन के साथ शिक्षा-प्रदान करने के लिये कहानी से बढ़कर साधन संसार ने अब तक नहीं डूँढ़ पाया।