पर जाते देखा। उनकी आँखे उसकी ओर फिरी। आँखें मिल गईं। वह झिझककर पीछे हट गई। किवाड़े बंद कर लिए। कुँअर साहब आगे बढ़ गए। शीतला को खेद हुआ कि उन्होंने मुझे देख लिया। मेरे सिर पर सारी फटी हुई थी, चारो तरफ उसमें पेबंद लगे हुए थे! वह अपने मन में न-जाने क्या कहते होंगे?
कुँअर साहब को गाँँववालों से विमलसिह के परिवार के कष्टों की ख़बर मिली थी। वह गुप्त रूप से उसकी कुछ सहा- यता करना चाहते थे। पर शीतला को देखते ही संकोच ने उन्हें ऐसा दबाया कि द्वार पर एक क्षण भी न रुक सके। मंगला के गृह-त्याग के तीन महीने पीछे आज वह पहली बार घर से निकले थे। मारे शर्म के बाहर बैठना छोड़ दिया था।
इसमे संदेह नहीं कि कुँँअर साहब मन में शीतला के रूप-रस का आस्वादन करते थे। मंगला के जाने के बाद उनके हृदय में एक विचित्र दुष्कामना जग उठी। क्या किसी उपाय से यह सुंदरी मेरी नहीं हो सकती? विमल का मुद्दत से पता नहीं। बहुत संभव है, वह अब संसार में न हो। किंतु वह इस दुष्कल्पना का विचार से दबाते रहते थे। शीतला की विपत्ति की कथा सुनकर भी वह उसकी सहायता करते डरते थे। कौन जाने, वासना यही वेष रखकर मेरे विचार और विवेक पर कुठारा- घात न करना चाहती हो। अंत को लालसा की कपट-लीला उन्हें भुलावा दे ही गई। वह शीतला के घर उसका हाल-चाल