कहते है कि स्त्रियों के जीवन का आधार प्रेम है। उनके जीवन का आधार वही भोजन, निंद्रा, राग-रंग, आमोद-प्रमोद है, जो समस्त प्राणियों का है। घंटे-भर तो सुन चुका। यह गीत कभी बंद भी होगा या नहीं; सब व्यर्थ में गला फाड़-फाड़- कर चिल्ला रही हैं।
अंत को न रहा गया। जनानखाने में आकर बोले―“यह तुम लोगों ने क्या काँव-काँव मचा रक्खी है? यह गाने-बजाने का कौन-सा समय है? बाहर बैठना मुशकिल हो गया!”
सन्नाटा छा गया, जैसे शोर-ग़ुल मचानेवाले बालकों में मास्टर पहुँच जाय! सभी ने सिर झुका लिए, और सिमट गईं।
मंगला तुरंत उठकर सामनेवाले कमरे में चली गई। पति को बुलाया, और आहिस्ते से बोली―क्यों इतना बिगड़ रहे हो?
“मैं इस वक्त़ गाना नहीं सुनना चाहता।”
“तुम्हे सुनाता ही कौन है? क्या मेरे कानों पर भी तुम्हारा अधिकार है?”
“फ़ुज़ूल की बमचख़―”
“तुमसे मतलब?”
“मैं अपने घर में यह कोलाहल न मचने दूँँगा!”
“तो मेरा घर कही और है?”
सुरेशसिंह इसका उत्तर न देकर बोले―इन सबसे कह दो, फिर किसी वक्त़ आवें।