थे, विशेषतः जब कोई महाशय ५,०००) दायज देने को प्रस्तुत हों।
देवप्रकाश―मैं तो तैयार हूँ, लेकिन तुम्हारा लड़का भी तो तैयार हो।
देवप्रिया―तुम बातचीत पक्की कर लो, वह तैयार हो ही जायगा। सभी लड़के पहले ‘नहीं’ करते हैं।
देवप्रकाश―ज्ञानू का इनकार केवल संकोच का इनकार नहीं है, वह सिद्धांत का इनकार है। वह साफ़-साफ़ कह रहा है कि जब तक भैया का विवाह न होगा, मैं अपना विवाह करने पर राज़ी नहीं हूँ।
देवप्रिया―उसकी कौन चलाए, वहाँ कोई रखैल रख ली होगी, विवाह क्यों करेगा? वहाँ कोई देखने जाता है?
देवप्रकाश―( झुँँझलाकर ) रखैल रख ली होती, तो तुम्हारे लड़के को ४०) महीने न भेजता, और न वे चीजे ही देता, जिन्हे पहले महीने से अब तक बरावर देता चला आता है। न-जाने क्यों तुम्हारा मन उसकी ओर से इतना मैला हो गया है! चाहे वह जान निकालकर भी दे दे, लेकिन तुम न पसीजोगी।
देवप्रिया नाराज़ होकर चली गई। देवप्रकाश उससे यही कहलाया चाहते थे कि पहले सत्यप्रकाश का विवाह करना उचित है, किंतु वह कभी इस प्रसंग को आने ही न देती थी। स्वयं देवप्रकाश की यह हार्दिक इच्छा थी कि पहले बड़े लड़के का विवाह करे, पर उन्होने भी आज तक सत्यप्रकाश