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प्रेम-पंचमी

था कि इस झिड़की का कारण माता की सावधानी नहीं, कुछ और है।

शिशु का नाम ज्ञानप्रकाश रक्खा गया था। एक दिन वह सो रहा था। देवप्रिया स्नानागार में थी। सत्यप्रकाश चुपके से आया, ओर बच्चे का ओढ़ना हटाकर उसे अनुरागमय नेत्रों से देखने लगा। उसका जी कितना चाहा कि उसे गोद से लेकर प्यार करूँ; पर डर के मारे उसने उसे उठाया नहीं, केवल उसके कपोलों को चूमने लगा। इतने में देवप्रिया निकल आई। सत्यप्रकाश को बच्चे को चूमते देखकर आग हो गई। दूर ही से डाँटा―हट जा वहाँ से!

सत्यप्रकाश दीन नेत्रों से माता को देखता हुआ बाहर निकल आया।

संध्या-समय उसके पिता ने पूछा―तुम लल्ला को क्यों रुलाया करते हो?

सत्य॰―मैं तो उसे कभी नहीं रुलाता। अम्मा खेलाने को नहीं देती।

देव॰―झूठ बोलते हो, आज तुमने बच्चे को चुटकी काटी।

सत्य॰―जी नहीं, मैं तो उसकी मुच्छियाँ ले रहा था।

देव॰―झूठ बोलता है!

सत्य॰―मैं झूठ नहीं बोलता।

देवप्रकाश को क्रोध आ गया। लड़के को दो-तीन तमाचे लगाए। पहली बार यह ताड़ना मिली, और निपराध! इसने उसके जीवन की काया-पलट कर दी।