देखो, लड़के का दिल छोटा हो गया। वह क्या जाने, क्या कहना चाहिए। अम्मा कह दिया, तो तुम्हें कौन-सी चोट लग गई?
देवप्रिया ने कहा―मुझे अम्मा न कहे।
सौत का पुत्र विमाता की आँखों में क्यों इतना खटकता है, इसका निर्णय आज तक किसी मनोभाव के पंडित ने नहीं किया। हम किस गिनती में हैं। देवप्रिया जब तक गर्भिणी न हुई, वह सत्यप्रकाश से कभी-कभी बाते करती, कहानियाँ सुनाती; किंतु गर्भिणी होते ही उसका व्यवहार कठोर हो गया। प्रसव-काल ज्यों-ज्यों निकट आता था, उसकी कठोरता बढ़ती ही जाती थी। जिस दिन उसकी गोद में एक चाँद-से बच्चे का आगमन हुआ, सत्यप्रकाश खूब उछला-कूदा और सौर-गृह में दौड़ा हुआ बच्चे को देखने गया। बच्चा देवप्रिया की गोद में सो रहा था। सत्यप्रकाश ने बड़ी उत्सुकता से बच्चे को विमाता को गोद से उठाना चाहा कि सहसा देवप्रिया ने सरोष स्वर में कहा―ख़बरदार, इसे मत छूना, नहीं तो कान पकड़कर उखाड़ लूँगी।
वालक उलटे पाँँव लौट आया, और कोठे की छत पर जाकर ख़ूब रोया। कितना सुदर बच्चा है! मैं उसे गोद में लेकर बैठता, तो कैसा मज़ा आता! मैं उसे गिराता थोड़े ही, फिर इन्होंने मुझे झिड़क क्यों दिया? भोला बालक क्या जानता