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गृह-दाह
( २ )

मातृहीन बालक संसार का सबसे करुणाजनक प्राणी है। दीन-से-दीन प्राणियों को भी ईश्वर का आधार होता है, जो उनके हृदय को सँभालता रहता है। मातृहीन बालक इस आधार से भी वंचित होता है। माता हो उसके जीवन का एक-मात्र आधार होती है। माता के बिना वह पंख-हीन पक्षी है।

सत्यप्रकाश को एकांत से प्रेम हो गया। अकेले बैठा रहता। वृक्षों में उसे उस सहानुभूति का कुछ-कुछ अज्ञात अनुभव होता था, जो घर के प्राणियों में उसे न मिलती थी। माता का प्रेम था, तो सभी प्रेम करते थे; माता का प्रेम उठ गया, तो सभी निष्ठुर हो गए। पिता की आँखों में भी वह प्रेम-ज्योति न रही। दरिद्र को कौन भिक्षा देता है?

छः महीने बीत गए! सहसा एक दिन उसे मालूम हुआ, मेरी नई माता आनेवाली है। दौड़ा पिता के पास गया और पूछा―क्या मेरी नई माता आवेगी? पिता ने कहा―हाँ, बेटा, वह आकर तुम्हें प्यार करेंगी।

सत्य॰―क्या मेरी माँ स्वर्ग से आ जायँगी?

देव॰―हाँ, वही आ जायँगी।

सत्य॰―मुझे उसी तरह प्यार करेंगी?

देवप्रकाश इसका क्या उत्तर देते? मगर सत्यप्रकाश उस दिन से प्रसन्न-मन रहने लगा। अम्मा आवेगी! मुझे गोद में लेकर प्यार करेगी! अब मैं उन्हे कभी दिक न