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कहानी में हुआ है, वैसा शायद अन्यत्र कहीं नहीं हो सका। कथोपकथन ( Dialogue) का महत्व भी इस कहानी में ख़ूब प्रकट हुआ है।

इन पाँचो कहानियों के एकत्र कर देने में हमारा केवल यही उद्देश्य है कि वर्तमान हिंदी-साहित्य के प्रधान अंगों से परिचित होने के लिये हमारे बालकों को जगह-जगह न भटकना पड़े, मनोरंजन के साथ-साथ उन्हें उत्तम शिक्षा मिले, और भाषा और शैली का अनुकरण करने के लिये उनके सामने हिंदी के जन-प्रिय तथा मान्य लेखक की कृति आदर्श रूप से उपस्थित हो।

प्रस्तुत पुस्तक का स्टैंडर्ड हमारी पाठशालाओं के सातवें, आठवें, नवें तथा दसवें दर्जे के विद्यार्थियों की क्षमता के अनुसार रक्खा गया है, जिससे स्कूल और पाठशालाओं के विद्यार्थी भी प्रेमचंदजी की विख्यात लेखन-शैली से परिचित हो सकें। इसका मैटर भी साल-भर में समाप्त हो जाने के हिसाब से ही संग्रह किया गया है।

आशा है, शिक्षा-प्रेमी सज्जन—विशेषकर हिंदी-साहित्य-सम्मेलन, मदरास-हिंदी-प्रचार-कार्यालय, जालंधर-कन्या-महाविद्यालय, गुरुकुल काँगड़ी, गुरुकुल वृदांवन, पंजाब, यू॰ पी॰, सी॰ पी॰, बिहार, दिल्ली, राजपूताना आदि प्रांतों की टेक्स्ट-बुक-कमेटियाँ, इंटरमीडिएट-बोर्ड और युनिवर्सिटियाँ तथा अन्यान्य भारतवर्षीय शिक्षा-संस्थाएँ—हमारे इस उद्योग से संतुष्ट होंगे, और अपने बालकों और बालिकाओं में इस पुस्तिका का प्रचार बढावेंगे।

श्रीदुलारेलाल भार्गव
(संपादक)