मोटेराम ने गम्भीर भाव से उत्तर दिया—यह तो कोई ऐसा कठिन काम नहीं है। मैं तो ऐसे-ऐसे अनुष्ठान कर सकता हूँ, कि आकाश से जल-वर्षा करा दूँ; मरी के प्रकोप को भी शान्त कर दूँ, अन्न का भाव घटा-बढ़ा दूँ। कांग्रेसवालों को परास्त कर देना तो कोई बड़ी बात नहीं। अँगरेज़ी पढ़े-लिखे महानुभाव सभझते हैं, कि जो काम हम कर सकते हैं, वह कोई नहीं कर सकता; पर गुप्त विद्याओं का उन्हें भी ज्ञान नहीं।
खाँ साहब—तब तो जनाब, यह कहना चाहिये, कि आप दूसरे खुदा हैं। हमें क्या मालूम था कि आप में यह कुदरत है; नहीं तो इतने दिनों तक क्यों परेशान होते।
मोटेराम—साहब, मैं गुप्त धन का पता लगा सकता हूँ, पितरों को बुला सकता हूँ, केवल गुण-ग्राहक चाहिये। संसार में गुणियों का अभाव नहीं है, गुणज्ञों का ही प्रभाव है।—'गुन ना हिरानो गुनग्राहक हिरानो है।'
राजा साहब—भला इस अनुष्ठान के लिए आपको क्या भेंट करना होगा।
मोटेराम—जो कुछ आपकी श्रद्धा हो।
राजा साहब—कुछ बतला सकते हैं, कि यह कौन-सा अनुष्ठान होगा?
मोटेराम—अनशन-व्रत के साथ मंत्रों का जप होगा। सारे शहर में हलचल न मचा दूँ, तो मोटेराम नाम नहीं।
राजा साहब—तो फिर कब से?
मोटेराम—आज ही हो सकता है। हाँ, पहले देवताओं के आवाहन के निमित्त थोड़े-से रुपए दिला दीजिये।
रुपये की कमी ही क्या थी। पण्डित जी को रुपए मिल गये और वह खुश-खुश घर आये। धर्मपत्नी से सारा समाचार कहा। उसने चिंतित होकर कहा—तुमने नाहक यह रोग अपने सिर लिया! भूख न बरदाश्त हुई, तो? सारे शहर में भद हो जायगी, लोग हँसी उड़ावेंगे। रुपए लौटा दो।
मोटेराम ने आश्वासन देते हुए कहा—भूख कैसे न बरदाश्त होगी? मैं ऐसा मूर्ख थोड़े ही हूँ, कि यों हीं जा बैठूँगा; पहले मेरे भोजन का