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बैंक का दिवाला

परन्तु इस असामयिक मृत्यु ने अब यह फैसला दूसरों के अधीन कर दिया। देखना चाहिये, इन ऋणों का क्या परिणाम होता है। हमें विश्वस्त रीति से मालूम हुआ है, कि नये महाराज ने, जो आजकल लखनऊ में विराजमान हैं, अपने वकीलों की सम्मति के अनुसार मृतक महारानी के ऋण-सम्बन्धी हिसाबों के चुकाने से इनकार कर दिया है। हमें भय है कि इस निश्चय से महाजनी टोले में बड़ी हलचल पैदा होगी, और लखनऊ के कितने ही धन-सम्पत्ति के स्वामियों को यह शिक्षा मिल जायगी, कि ब्याज का लोभ कितना अनिष्टकारी होता है।'

लाला साईंदास ने अखबार मेज़ पर रख दिया, और आकाश की ओर देखा, जो निराशों का अन्तिम आश्रय है। अन्य मित्रों ने भी यह समाचार पढ़ा। इस प्रश्न पर वाद-विवाद होने लगा। साईंदास पर चारों ओर से बौछार पड़ने लगी। सारा दोष उन्हीं के सिर मढ़ा गया, और उनकी चिरकाल की कार्य कुशलता और परिणाम-दर्शिता मिट्टी में मिल गई। बैंक इतना बड़ा घाटा सहने में असमर्थ था। अब यह विचार उपस्थित हुआ, कि कैसे उसके प्राणों की रक्षा की जाय!

(५)

शहर में यह खबर फैलते ही लोग अपने रुपए वापस लेने के लिए आतुर हो गये। सुबह से शाम तक लेनदारों का ताँता लगा रहता था। जिन लोगों का धन चलतू हिसाब में जमा था, उन्होंने तुरन्त निकाल लिया, कोई उज्र न सुना। यह उसी पत्र के लेख का फल था, कि नेशनल-बैंक की साख उठ गई। धीरज से काम लेते, तो बैंक सँभल जाता; परन्तु आँधी और तूफान में कौन नौका स्थिर रह सकती है? अंत में ख़ज़ांची ने टाट उलट दिया। बैंक की नसों से इतनी रक्त-धाराएँ निकलीं, कि वह प्राण-रहित हो गया।

तीन दिन बीत चुके थे। बैंक के घर के सामने सहस्रों आदमी एकत्र थे। बैंक के द्वार पर सशस्त्र सिपाहियों का पहरा था। नाना प्रकार की अफ़वाहें उड़ रही थीं। कभी ख़बर उड़ती, लाला साईंदास ने विष-पान-