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बैंक का दिवाला

हैं; पर किसी के बदन पर तेज या प्रकाश का नाम नहीं। ये लोग न जाने क्या भोजन करते और किस कूएँ का पानी पीते हैं, कि जिसे देखिये, ताज़ा सेब बना हुआ है। यह सब जल-वायु का प्रभाव है।

बरहल उत्तर दिशा में नेपाल के समीप, अंग्रेज़ी-राज्य में एक रियासत थी। यद्यपि जनता उसे बहुत मालदार समझती थीं; पर वास्तव में उस रियासत की आमदनी दो लाख से अधिक न थी। हाँ, क्षेत्रफल बहुत विस्तृत था। बहुत भूमि ऊसर और उजाड़ थी। बसा हुआ भाग भी पहाड़ी और बंजर था। ज़मीन बहुत सस्ती उठती थी।

लाला साईंदास ने तुरन्त अलगनी से रेशमी सूट उतार कर पहन लिया और मेज़ पर आकर इस शान से बैठ गये, मानो राजा-रानियों का यहाँ आना कोई साधारण बात नहीं। दफ्तर के क्लर्क भी सँभल गये। सारे बैंक में सन्नाटे की हलचल पैदा हो गई। दरबान ने पगड़ी सँभाली। चौकीदार ने तलवार निकाली, और अपने स्थान पर खड़ा हो गया। पंखा-कुली की मीठी नींद भी टूटी और बंगाली बाबू महारानी के स्वागत के लिए दफ़्तर से बाहर निकले।

साईंदास ने बाहरी ठाट तो बना लिया; किन्तु चित्त आशा और भय से चंचल हो रहा था। एक रानी से व्यवहार करने का यह पहला ही अवसर था; घबराते थे, कि बात करते बने या न बने। रईसों का मिज़ाज आसमान पर होता है। मालूम नहीं, मैं बात करने में कहाँ चूक जाऊँ। उन्हें इस समय अपने में एक कमी मालूम हो रही थी। वह राजसी नियमों से अनभिज्ञ थे। उनका सम्मान किस प्रकार करना चाहिये, उनसे बातें करने में किन बातों का ध्यान रखना चाहिये, उनकी मर्यादा-रक्षा के लिए कितनी नम्रता उचित है, इस प्रकार के प्रश्नों से वह बड़े असमंजस में पड़े हुए थे, और जी चाहता था, कि किसी तरह इस परीक्षा से शीघ्र छुटकारा हो जाय। व्यापारियों, मामूली जमींदारों या रईसों से वह रुखाई और सफ़ाई का बर्ताव किया करते थे, और पढ़े-लिखे सज्जनों से शील और शिष्टता का। उन अवसरों पर उन्हें किसी विशेष विचार की आवश्यकता न होती थी; पर इस समय बड़ी परेशानी हो