दूंगी, तुम कितनी मिठाई खाओगे ? यह कहते-कहते उसकी आँखें भर आई । आह ! यह मनहूस मंगल आज ही फिर आवेगा, और फिर ये ही बहाने करने पड़ेंगे ! हाये अपना प्यारा बच्चा धेले की मिठाई को तरसे, और घर में किसी का पत्थर-सा कलेजा न पसीजे ! वह बेचारी तो इन चिंताओं में डूबी हुई थी, और धान किसी तरह चुप ही न होता था। जब कुछ वश न चला, तो माँ की गोद से ज़मीन पर उतर कर लोटने लगा और रो-रोकर दुनिया सिर पर उठा ली । मा ने बहुत बहलाया, फुसलाया यहाँ तक कि उसे बच्चे के इस हठ पर क्रोध भी आ गया । मानव-हृदय के रहस्य कभी समझ में नहीं आते । कहाँ तो बच्चे को प्यार से चिपटाती थी, कहाँ ऐसी झल्लाई, कि उसे दो-तीन थप्पड़ ज़ोर से लगाये और घुड़ककर बोली-चुप रह अभागे ! तेरा ही मुँह मिठाई खाने का है ! अपने दिन को नहीं रोता, मिठाई खाने चला है!
बाँका गुमान अपनी कोठरी के द्वार पर बैठा हुआ यह कौतुक बड़े ध्यान से देख रहा था । वह इस बच्चे को बहुत चाहता था । इस वक्त के थप्पड़ उसके हृदय में तेज़ भाले के समान लगे, और चुभ गये शायद उनका अभिप्राय भी यही था । धुनिया रूई को धुनकने के लिए ताँत पर चोट लगाता है।
जिस तरह पत्थर और पानी में आग छिपी रहती है, उसी तरह मनुष्य के हृदय में भी-चाहे वह कैसा ही क्रूर और कठोर क्यों न हो- उत्कृष्ट और कोमल भाव छिपे रहते हैं। गुमान की आँखें भर आई, आँसू की बूंदें बहुधा हम हृदय की मलिनता को उज्वल कर देती हैं । गुमान सचेत हो गया। उसने जाकर बच्चे को गोद में उठा लिया और अपनी पत्नी से करुणोत्पादक स्वर में बोला--बच्चे पर इतना क्रोध क्यों करती हो ? तुम्हारा दोषी मैं हूँ, मुझको जो दण्ड चाहे दो । परमात्मा ने चाहा तो कल से लोग इस घर में मेरा और मेरे बाल-बच्चों का भी आदर करेंगे। तुमने आज मुझे सदा के लिए इस तरह जगा दिया, मानों मेरे कानों में शंखनाद कर मुझे कर्म-पथ में प्रवेश करने का उपदेश दिया हो।