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शंखनाद

मौजूद हैं। ज़मींदार को सानितुल-मिल्कियत करने का कोई इस्तहक्काक नहीं है।

अब मंदबुद्धि शान की बारी आई ; पर बेचारा किसान, बैलों के पीछे आँखें बंद करके चलनेवाला, ऐसे गूढ विषय पर कैसे मुँह खोलता। दुबिधा में पड़ा हुआ था । तब उसकी सत्यवक्ता धर्मपत्नी ने अपनी जेठानी का अनुसरण कर यह कठिन कार्य संपन्न किया । बोली-बड़ी बहन ने जो कुछ कहा, उसके सिवा और दूसरा उपाय नहीं । कोई तो कलेजा तोड़-मोड़कर कमाये ; मगर पैसे-पैसे को तरसे, तन ढाकने को वस्त्र तक न मिले, और कोई सुख की नींद सोवे, हाथ बढ़ा-बढ़ा के खाय ! ऐसी अँधेरी नगरी में अब हमारा निबाह न होगा।

शान चौधरी ने भी इस प्रस्ताव का मुक्तकंठ से अनुमोदन किया । अब बूढ़े चौधरी गुमान से बोले-क्यों बेटा, तुम्हें भी यही मंजूर है ? अभी कुछ नहीं बिगड़ा । वह आग अब भी बुझ सकती है। काम सबको प्यारा है, चाम किसी को नहीं। बोलो, क्या कहते हो ? कुछ काम-धन्धा करोगे या अभी आँखें नहीं खुली !

गुमान में धैर्य की कमी न थी। बातों को इस कान सुनकर उस कान उड़ा देना उसका नित्य-कर्म था; किन्तु भाइयों की इस 'जन-मुरीदी' पर उसे क्रोध आ गया । बोला-भाइयों की जो इच्छा है, वही मेरे मन में भी लगी हुई है । मैं भी इस जंजाल से अब भागना चाहता हूँ, मुझसे न मजूरी हुई, न होगी। जिसके भाग्य में चक्की पीसना बदा हो, वह पीसे । मेरे भाग्य में तो चैन करना लिखा है, मैं क्यों अपना सिर अोखली में दूँ ? मैं तो किसी से काम करने को नहीं कहता ? आप लोग क्यों मेरे पीछे पड़े हुए हैं ! अपनी-अपनी फिक्र कीजिये, मुझे आध सेर आटे की कमी नहीं है।

इस तरह की सभाएँ कितनी ही बार हो चुकी थीं ; परन्तु इस देश की सामाजिक और राजनीतिक सभात्रों की तरह इससे भी कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता था । दो-तीन दिन गुमान ने घर पर खाना नहीं खाया । जतनसिंह ठाकुर शौकीन आदमी थे, उन्हीं की चौपाल में पड़ा रहता ।