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शंखनाद

भानु चौधरी अपने गाँव के मुखिया थे । गाँव में उनका बड़ा मान था । दारोग़ाजी उन्हें टाट बिना ज़मीन पर न बैठने देते। मुखिया साहब की ऐसी धाक बंधी हुई थी, कि उनकी मर्जी बिना गाँव़ में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता था । कोई घटना, चाहे वह सास-बहू का विवाद हो, चाहे मेड़ या खेत का झगड़ा, चौधरी साहब के शासनाधिकार को पूर्ण रूप से सचेत करने के लिए काफ़ी थी। वह तुरन्त घटनास्थल पर जा पहुँचते, तहकीकात होने लगती, गवाह और सबूत के सिवा किसी अभि- योग को सफलता-सहित चलाने में जिन बातों की ज़रूरत होती है, उन सब पर विचार होता और चौधरीजी के दरबार से फैसला हो जाता। किसी को अदालत तक जादे की जरू त पड़ती। हाँ, इस कष्ट के लिए चौधरी साहब कुछ फ़ोल ज़रू: लेते थे । यदि किसी अवसर पर फ़ीस मिलने में असुविधा के कारण उन्हें घरज से काम लेना पड़ता तो गाँव में आफत मच जाती थी ; क्योंकि उनके धीरज और दारोग़ाजी के क्रोध में कोई घनिष्ठ सम्बन्ध था । सारांश यह, कि चौधरी से उनके दोस्त-दुश्मन सभी चौकन्ने रहते थे ।

( २ )

चौधरी महाशय के तीन सुयोग्य पुत्र थे। बड़े लड़के वितान एक सुशिक्षित मनुष्य थे । डाकिये के रजिस्टर पर दस्तखत कर लेते थे। बड़े अनुभवी, बड़े मर्मज्ञ, बड़े नीतिकुशल । मिर्जई की जगह कमीज पह- नते, कभी-कभी सिगरेट भी पीते, जिससे उनका गौरव बढ़ता था ।यद्यपि उनके ये दुर्व्यसन बूढ़े चौधरी को नापसन्द थे; पर बेचारे विवश थे; क्योंकि अदालत और कानून के मामले बितान के हाथों में थे । वह कानून का पुतला था । कानून की दफ़ाएँ जबान पर रखी रहती थीं गवाह गढ़ने में वह पूरा उस्ताद था । मझले लड़के शान चौधरी कृषि विभाग के अधि- कारी थे। बुद्धि के मन्दे , लेकिन शरीर से बड़े परिश्रमी । जहाँ घास न