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प्रेम-द्वादशी

एकत्र हो जाते, और साहुजी के बर्राने की पुष्टि करते । इस तरह फटकारें सुनकर बेचारे चौधरी अपना-सा मुह लेकर लौट आते ; परन्तु डेढ़ सौ रुपयों से इस तरह हाथ धो लेना आसान न था। एक बार वह भी गरम पड़े । साहुजी बिगड़कर लाठी ढूँढ़ने घर चले गये। अब सहुआइनजी ने मैदान लिया । प्रश्नोत्तर होते-होते हाथा-पाई की नौबत आ पहुची। -सहुश्राइन ने घर में घुसकर किवाड़े बन्द कर लिये । शोर गुल सुनकर गाँव के भलेमानस जमा हो गये। उन्होंने दोनो को समझाया । साहुजी को दिलासा देकर घर से निकाला । वह परामर्श देने लगे, कि इस तरह सिरफुटौवल से काम न चलेगा। पंचायत कर लो । जो कुछ तय हो जाय, उसे स्वीकार कर लो । साहुजी राज़ी हो गये । अलगू ने भी हामी भर ली।

( ७ )

पंचायत की तैयारियाँ होने लगीं । दोनो पक्षों ने अपने-अपने दल बनाने शुरू किये। इसके बाद तीसरे दिन उसी वृक्ष के नीचे फिर पंचायत बैठी । वही संध्या का समय था। खेतों में कौए पंचायत कर रहे थे। विवाद-ग्रस्त विषय यह था कि मटर की फलियों पर उनका कोई स्वत्व है या नहीं ; और जब तक यह प्रश्न हल न हो जाय, तब तक वे की पुकार पर अपनी अप्रसन्नता प्रकट करना आवश्यक समझते थे । पेड़ की डालियों पर बैठी शुक-मण्डली में यह प्रश्न छिड़ा हुआ था कि मनुष्यों को उन्हें बेमुरौवत कहने का क्या अधिकार है, जब उन्हें स्वयं अपने मित्रों से दग़ा करने में भी संकोच नहीं होता ।

पंचायत बैठ गई, तो रामधन मिश्र ने कहा--अब देरी क्यों है ? पंचों का चुनाव हो जाना चाहिये । बोलो चौधरी, किस-किसको पंच बदते हो?

अलगू ने दीन भाव से कहा-समझू साहु ही चुन लें।

समझू खड़े हुए और कड़ककर बोले—मेरी ओर से जुम्मन शेख ।

जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू चौधरी का कलेजा धक्-धक् करने लगा, मानो किसी ने अचानक थप्पड़ मार दिया हो । रामधन अलगू के