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शान्ति

बुरा मालूम होता था । इसके बदले यदि वह कुछ भली-बुरी बातें कह लेती, तो मुझे स्वीकार था। मेरे हृदय से उनकी मान मर्यादा घटने लगी। किसी मनुष्य पर इस प्रकार कटाक्ष करना उसके हृदय से अपने आदर को मिटाने के समान है। मेरे ऊपर सबने गुरुतर दोषारोपण यह था, कि मैंने बाबूजी पर कोई नोइन-मंत्र क दिया है : वह मेरे इशारों पर चलते हैं ; पर यथार्थ में बात उल्टी ही थी

भाद्र मास था । जन्माष्टमी का त्योहार पाया। घर में सब लोगों ने व्रत रखा। मैंने नी सदैव की भांति व्रत रखा । ठाकुर जी का जन्म रात को बारह बजे होने वाला था, हम सब बैटी गाती बजती थी। बाबूजी इन असभ्य व्यवहारों के बिन कुन विरुद्ध थे। वह होली के दिन रंग भी न खेंलते, गाने-बजाने की तो बात ही अलग। रात को एक बजे जब मैं उनके कमरे में गई, तो मुझे समझने लगे-इस प्रकार शरीर को कष्ट देने से क्या ल भ ? कृष्णा महापुरुष अवश्य थे, और उनकी पूजा करना हमारा कर्तव्य है : पर इस गाने-बजाने से क्या फायदा ? इस दोंग का नाम धर्म नहीं है । धर्म का सम्बन्ध सचाई और ईमान से है, दिखावे से नहीं।

बाबूजी स्वयं इस मार्ग का अनुसरण करते थे । वह भगवद्गता की अत्यन्त प्रशंसा करते ; पर उसका पाठ कभी न करते थे। उपनिषदों की प्रशंसा में उनके मुख से मानो पुष्प-वृष्टि होने लगती थी ; पर मैंने उन्हें कभी कोई उपनिषद् पढ़ते नहीं देखा। वह हिन्दू धर्म के गूढ़ तत्व-ज्ञान पर लटू थे ; पर इसे समयानुकूल नहीं समझते थे। विशेषकर वेदान्त को तो भारत की अवनति का मूल कारण समझते थे ! वह कहा करते, कि इसी वेदान्त ने हमको चौरट कर दिया ; हम दुनिया के पदार्थों को तुच्छ समझने लगे, जिसका फल अब तक भुगत रहे हैं। अब उन्नति का समय है । चुपचाप बैठे रहने से निर्वाह नहीं । संतोष ने ही भारत को गारद कर दिया।

उस समय उनको उत्तर देने की शक्ति मुझमें कहाँ थी ? हाँ, अब जान पड़ता है, कि वह योरप-सभ्यता के चक्कर में पड़े हुए थे। अब वह स्वयं ऐसी बातें नहीं करते, वह जोश अब ठंडा हो चला है ।