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शांति

पर मुझे उनकी शिक्षा-पूर्ण बातें न भाती थीं। मैं सोचती, जब मेरा पति सैकड़ों रूपए महीना कमाता है, तो घर में चेरी बनकर क्यों रहूँ? यों अपनी इच्छा से चाहे जितना काम करूँ; पर ये लोग मुझे आज्ञा देनेवाले कौन होते हैं ? मुझमें अत्माभिमान की मात्रा बढ़ने लगी । यदि अम्मा मुझे कोई काम करने को कहतीं, तो मैं अदबदाकर उसे टाल जाती। एक दिन उन्होंने कहा--सबेरे के जलपान के लिए कुछ दालमोट बना लो। मैं बात अनसुनी कर गई । अम्माँ ने कुछ देर तक मेरी राह देखी ; पर जब मैं अपने कमरे से न निकली, तो उन्हें गुस्सा हो आया । वह बड़ी ही चिड़चिड़ी प्रकृति की थी! तनिक-सी बात पर टुनक जाती थीं। उन्हें अपनी प्रतिष्ठा का इतना अभिमान था,कि मुझे बिलकुल लौंडी ही सम- झती थीं। हाँ, अपनी पुत्रियों से सदैव नम्रता से पेश आती ; बल्कि मैं तो यह कहूँगी, कि उन्हें सिर चढ़ा रखा था। वह क्रोध में भरी हुई मेरे कमरे के द्वार पर आकर बोलीं-तुमसे मैंने दालमोट बनाने को कहा था, बनाया ? मैं कुछ रुष्ट होकर बोली-अभी फुर्सत नहीं मिली।

अम्माँ--तो तुम्हारी जान में दिन-भर पड़े रहना ही बड़ा काम है ? यह आजकल तुम्हें हो क्या गया है ? किस घमंड में हो ? क्या यह सोचती हो, कि मेरा पति कमाता है, तो मैं काम क्यों करूँ ? इस घमण्ड में न भूलना! तुम्हारा पति लाख कमाये ; लेकिन घर में राज मेरा ही रहेगा। आज वह चार पैसे कमाने लगा है, तो तुम्हें मालकिन बनने की हवस हो रही है; लेकिन उसे पालने-पोसने तुम नहीं आई थीं, मैंने ही उसे पढ़ा-लिखाकर इस योग्य बनाया है । वाह ! कल की छोकरी और अभी से यह गुमान!

मैं रोने लगी। मुह से एक बात न निकली। बाबूजी उस समय ऊपर कमरे में बैठे कुछ पढ़ रहे थे । ये सब बातें उन्होंने सुनीं। उन्हें बड़ा कष्ट हुआ। रात को जब वह घर आये तो बोले-देखा तुमने आज अम्माँ का क्रोध ? यही अत्याचार है, जिससे स्त्रियों को अपनी ज़िन्दगी पहाड़ मालूम होने लगती है। इन बातों से हृदय में कितनी वेदना होती है, इसका जानना असम्भव है। जीवन भार हो जाता है, हृदय जर्जर हो