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प्रेमाश्रम

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प्रेमाश्रम मनोहर नै हँस कर कहा-–पटवारी की देह क्यों नहीं फूल जाती, चुचके आम बने | सुक्खू–पटवारी सैकडे-हजार की गठरी थोड़े ही उड़ाता है। जब बहुत दौफैच किया तो दो-चार रुपये मिल गये । उसकी तनदाह तो कानूनगोय ले लेते है । इसी छीनझपट पर निर्वाह करता है, तो देह कहाँ से फूलेगी? तकावी मे देखा नही, तहसीलदार साहब ने हजारों पर हाथ फेर दिया। दुखरन-कहते हैं कि विद्या से आदमी की बुद्धि ठीक हो जाती हैं, पर यहाँ उलटा ही देखने में आता है। यह हाकिम और अमले तो पढ़े-लिखे विद्वान होते हैं, लेकिन किसी को दया-धर्म का विचार नहीं होता।। मुक्लू-जब देश के अभाग आते हैं तो सभी बाते उलटी हो जाती है। जब बीमार के मरने के दिन आ जाते है तो औषधि भी औगुन करती है। मनोहर-हम लोग तो रिसवत दे कर उनकी आदत बिगाड़ देते है। हम न दें तो वह कैसे पाये ! बुरे तो हम हैं। लेने वाला मिलता हुआ घन थोडे ही छोड़ देगा ? यहाँ तो आपस में ही एक दूसरे को खाये जाते है। तुम हमे लूटने को तैयार, हम तुम्हे लूटने को तैयार। इसका और क्या फल होगा? | दुखरन-अरे तो हम मूरख, गॅवार, अपढ़ है। वह लोग तो विद्यावान है। उन्हें न सोचना चाहिए कि यह गरीब लोग हमारे ही भाई बद है। हमें भगवान ने विद्या दी हैं, तो इन पर निगाह रखे। इन विद्यावानो चै तो हम मूरख ही अच्छे। अन्याय सह लेना अन्याय करने से तो अच्छा है। सुक्खू---यह विद्या का दोष नहीं, देश का अभाग है। मनोहर- विद्या का दोष है, ने देश को अभाग; यह हमारी फूट का फल है। सब अपना दोष है। विद्या से और कुछ नहीं होता तो दूसरों को घन ऐठना तो को जाता है। मूरख रहने से तो अपना धन गंवाना पडता है। सुक्खू-हो, तुमने यह ठीक कहा कि विद्या से दूसरो का धन लेना आ जाता है। हमारे वडे सरकार जब तक हे दो साल की मालगुजारी बाकी पड जाती थी, तब भी डाँट-डपट कर छोड़ देते थे। छोटे सरकार जब से मालिक हुए हैं, देखते हो, कैमा उपद्रव कर रहे हैं। रात-दिन जाफा, बेदखली, अखराज की धूम मची हुई है ! | दुखरल कारिंदा साहब कल कहते थे कि अव की इस गाँव की बारी है, देखो क्या होता है। | मनोहर--होगा क्यो, तुम हमारे खेत पर चढोगे, हम तुम्हारे खेत पर चढेगे, छोटे सरकार की चाँदी होगी। सरकार की आँखे तो तब खुलती जब कोई किसी के खेत पर दाँव में लगाता। सब कौल कर लेतै। लेकिन यह कहाँ होनेवाला है। सव से पहले तो सुक्खू महतो दौड़ेंगे । सुक्खू कौन कहे कि मनोहर ने दौड़ेंगे। भनोहर मुझसे चाहे गगाजली उठवा लो, मैं खेन पर न जाऊँगा और जाऊँगा