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प्रेमाश्रम

डपटसिंह के घर की और चला, पर अभी तक कुछ निश्चय न कर सका था कि उनसे क्या कहूँगा। वह भटके हुए पथिक की भाँति एक पगडंडी पर चला जा रहा था, बिलकुल बेखबर कि यह रास्ता मुझे कहाँ लिये जाता है, केवल इसलिए कि एक जगह खड़े रहने से चलते रहना अधिक सन्तोषप्रद था। क्या हानि है, यदि लोग मुचलका देने पर राजी हो जायें। यह विधान इतना दूरस्थ था कि वहाँ तक उसका विचार भी न पहुँच सकता था।

डपटसिंह के दालान में एक मिट्टी के तेल की कुप्पी जल रही थी। भूमि पर पुआल बिछी हुई थी और कई आदमी और लड़के एक मोटे टाट का टुकड़ा ओढ़े सिमटे पड़े थे। एक कोने में एक कुतिया बैठी हुई पिल्लो को दूध पिला रही थी। डपटसिंह अभी सोये न थे। सोच रहे थे कि सुक्खू के कोल्हाड़े से गर्म रस आ जाय तो पी कर सोये। उनके छोटे भाई झपटसिंह कुप्पी के सामने रामायण लिये आँखे गड़ा कर पढ़ने का उद्योग कर रहे थे। मनोहर को देख कर बोले, आओ महतो, तुम तो बड़े झमेले में पड़े गये।

मनोहर–अब तो तुम्हीं लोग बचाओ तो बच सकते है।

डपट तुम्हें बचाने के लिए हमने कौनसी बात उठा रखी? ऐसा बयान दिया कि बलराज पर कोई दाग नहीं आ सकता था, पर भाई मुचलका तो नहीं दे सकते है। आज मुचलका दे दे, कल को गौस खाँ झूठो कोई सवाल दे दे तो सजा हो जाय।

मनोहर-नहीं भैया, मुचलका देने को मैं आप ही न कहूँगा। इपटसिंह मनोहर के सदिच्छुक थे, पर इस समय उसे प्रकट न कर सकते थे। बोले, परमात्मा बैरी को भी कपूत सन्तान न दे। बलराज ने कल झूठ-मूठ बतबढ़ाव न किया होता तो तुम्हें क्यों इस तरह लोगों की चिरौरी करनी पड़ती।

हठात् कादिर खाँ की अवाज यह कहते हुए सुनाई दी, बड़ा न्याय करते हो ठाकुर। बलराज ने झूठ-मूठ बतबढ़ाव किया था तो उसी घड़ी डांट क्यों न दिया। तब तो तुम भी बैठे मुस्कुराते रहे और आँखो से इस्तीलुक देते रहे। आज जब बात बिगड़ गर्मी है तो कहते हो झूठ-मूठ बतबढ़ाव किया था। पहले तुम्हीं ने अपनी लड़की का रोना रोया था, मैंने अपनी रामकहानी कही थी। यही सब सुन-सुन कर बलराज भरा बैठा था। ज्यों ही मौका मिला खुल पड़ा। हमने और तुमने रो-रो कर बेगार दी, पर डर के मारे मुँह ने खोल सके। वह हिम्मत का जवान है, उससे बरदास न हुई। वह जब हम सभी लोगों की खातिर आगे बढ़ा तो यह कहाँ का न्याय है कि मुचलके के डर से उसे आग में झोक दें?

डपटसिंह ने विस्मित हो कर कहा- तो तुम्हारी सलाह है कि मुचलका दे दिया जाय?

कादिर--नहीं, मेरी सलाह नहीं है। मेरी सलाह है कि हम लोग अपने-अपने बयान पर डटे रहे। अभी कौन जानता है कि मुचलका देना ही पड़ेगा। लेकिन अगर ऐसा हो तो हमें पीठ न फेरनी चाहिए। भला सोचो, कितना बड़ा अंधेर है कि हम