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प्रेमाश्रम


प्रभाशंकर ने ज्ञान बाबू को श्रद्धा-पूर्ण नेत्र से देखा। उन्हें ऐसा जान पड़ा कि भैया साक्षात् सामने खड़े हैं और मेरे सिर पर रक्षा का हाथ रखे हुए हैं। अगर अवस्था बाधक न होती तो वह ज्ञानशंकर के पैरों पर गिर पड़ते और उसे आँसू की बूंदो से तर कर देते। उन्हें लज्जा आयी कि मैंने ऐसे कर्तव्यपरायण, ऐसे न्यायशील, ऐसे दयालु, ऐसे देवतुल्य पुरुष का तिरस्कार किया। यह मैरी उद्दडता थी कि मैंने उससे दयाशंकर की मिफारिश करने का आग्रह किया। यह सर्वथा अनुचित था। आजकल के सुशिक्षित युवक-गण अपना कर्त्तव्य स्वयं समझते हैं और अपनी इच्छानुकूल उसका पालन करते है, यही कारण है कि उन्हें किसी की प्रेरणा अप्रिय लगती है। बोले, बेटा, यह समाचार सुन कर मुझे कितना हर्ष हो रहा है, वह प्रकट नहीं कर सकता। तुमने मुझे प्राणदान दिया और कुल मर्यादा रख ली। मेरा रोम-रोम तुम्हारा अनुगृहीत है। मुझे अब विश्वास हो गया है कि भैया देवलोक में बैठे हुए भी मेरी रक्षा कर रहे है। मुझे अत्यत खेद है कि मैंने तुम्हें कटु शब्द कहे, परमात्मा मुझे इसका दंड दे, मेरे अपराध क्षमा करो। बुड्ढे आदमी चिड़चिड़े हुआ करते हैं, उनकी बातों का बुरा न मानना चाहिए। मैंने अब तक तुम्हारा अंतर-स्वरूप न देखा था, तुम्हारे उच्चादर्शो से अनभिज्ञ था। मुझे यह स्वीकार करते हुए खेद होता है कि मैं तुम्हें अपना अशुभचिन्तक समझने लगा था। पर अब मुझे तुम्हारी सज्जनता, तुम्हारी भ्रातृ-स्नेह और तुम्हारी उदारता का अनुभव हुआ। मुझे इस मतिभ्रम का सदैव पछतावा रहेगा।

यह कहने-कहते लाली प्रभाशंकर का गला भर आया। हृदय पर जमा हुआ बर्फ पिघल गया, आँखो से जल-बिन्दु गिरने लगे। किन्तु ज्ञानशंकर के मुख से सावना को एक शब्द भी न निकला। वह इस कपटाभिनय का रंग भी गहरा न कर सके। प्रभाशंकर की सरलता, श्रद्धालुता और निर्मलता के आकाश में उन्हें अपनी स्वार्थान्धता, कपटगीलना और मलिनता अत्यत कालिमापूर्ण और ग्लानिमय दिखाई देने लगी। वह स्वयं अपनी ही दृष्टि में गिर गये, इस कपट-कांड का आनन्द न उठा सके। शिक्षित आत्मा इतनी दुर्बल नहीं हो सकती, इस विशुद्ध वात्सल्य ध्वनि ने उनकी सोई हुई आत्मा को एक क्षण के लिए जगा दिया। उसने आँखें खोली, देखा कि मन मुझे कांटो में घसीटें लिए चला जाता है। वह अड़ गयी, धरती पर पैर जमा दिये और निश्चय कर लिया कि इममें आगे न बढ़ूँगी।

सहसा सैयद ईजाद हुसेन मुस्कराते हुए दीघानखाने में आये। प्रमाशंकर ने उनकी ओर आशा भरे नेत्रों से देख कर पूछा, कहिए, कुशल तो है?

ईजाद—सब खुदा का फजलो करम है। लाइए, मुंह मीठा कराइए। खुदा गवाह हैं कि सुबह से अब तक पानी का एक कतरा भी हलक के नीचे गया हो। वारे खुदा ने आबरू रख ली, बाजी अपनी रही, बेदाग छुड़ा लाये, आँच तक न लगी। हक यह है कि जितनी उम्मीद न थी उसमें कुछ ज्यादा ही कामयाबी हुई। मुझे ज्वालासिंह से ऐसी उम्मीद न थी।

प्रभाशंकर—ज्ञानू, यह तुम्हारी सद्प्रेरणा का फल है। ईश्वर तुम्हें चिरंजीवि करे।