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प्रेमाश्रम


किसी को यह कहने का अवसर मत दो कि एक भाई की आँखे बंद होते ही आपस में ऐसी अनबन हो गयी कि अब एक घर में रह भी नहीं सकते। मेरी यह प्रार्थना स्वीकार करो।

ज्ञानशंकर पर इन विनयपूर्ण शब्दों का कुछ भी असर न हुआ। उनके विचार में वह विकृत भावुकता थी, जो मानसिक दुर्बलता का चिह्न है। हाँ, उस पर कृत्रिमता का संदेह नहीं हो सकता था। उन्हें विश्वास हो गया कि चाचा साहब को इस समय हार्दिक वेदना हो रही है। वृद्धजनों को हृदय कुछ कोमल हुआ करता है। इन्होंने जन्म भर कुल-प्रतिष्ठा तथा मान-मर्यादा के देवता की उपासना की है। इस समय अपकीर्ति का भय चित्त को अस्थिर कर रहा है। बोले, मुझे आपकी आज्ञा शिरोधार्य है, पर यह तो विचार कीजिए कि इस पुराने घर में दो परिवारों का निर्वाह हो भी कैसे सकता है? रसोई का मकान केवल एक ही है। ऊपर सोने के लिए तीन कमरे हैं। आँगन कहने को तो है, किन्तु वायु और प्रकाश का प्रवेश केवल एक में ही होता है। स्नान गृह भी एक है। इन कप्टों को नित्य नहीं झेला जा सकता। हमारी आयु इतनी दीर्घ नही है कि उसका एक भाग कष्टों को ही भेंट किया जाय। आपकी कोमल आत्मा को इस परिवर्तन से दुःख अवश्य होगा और मुझे आपसे पूर्ण सहानुभूति है, किन्तु भावुकता के फेर में पड़ कर अपने शारीरिक सुख और शान्ति का बलिदान करना मुझे पसंद नहीं। यदि आप भी इस विषय पर निष्पक्ष हो कर विचार करेंगे तो मुझसे सहमत हो जायेंगे।

प्रभाशंकर मुझे तो इस बदनामी के सामने यह असुविधाएँ कुछ भी नहीं मालूम होती। जैसे अब तक काम चलता आ रहा है, उसी भाँति अब भी चल सकता है।

ज्ञानशंकर-आपके और मेरे जीवन-सिद्धातों में बड़ा अंतर है। आप भावों की आराधना करते हैं, मैं विचार का उपासक हूँ। आप निंदा के भय से प्रत्येक आपत्ति के सामने सिर झुकायेंगे, मैं अपनी विचार स्वतंत्रता के सामने लोकमत की लेश-मात्र भी परवाह नहीं करता! जीवन आनंद से व्यतीत हो, यह हमारा अभीष्ट है। यदि संसार स्वार्थपरता कह कर इसकी हँसी उड़ाये, निंदा करे तो मैं उसकी सम्मति को पैरों तले कुचल डालूंगा। आपकी शिष्टता का आधार ही आत्मघात है। आपके घर में चाहे उपवास होता हो, किन्तु कोई मेहमान आ जाये तो आप ऋण ले कर उसका सत्कार करेंगे। मैं ऐसे मेहमान को दूर से ही प्रणाम करूंगा। आपके यहाँ जाड़े में मेहमान लोग प्रायः बिना ओढ़ना-बिछौना लिए ही चले आते हैं। आप स्वयं जाड़ा खाते हैं, पर मेहमान के ओढ़ने-बिछौने की प्रबंध अवश्य करते है। मेरे लिए यह अवस्था दुस्सह है। किसी मनुष्य को चाहे वह हमारा निजी सम्बन्धी ही क्यों न हो। यह अधिकार नहीं है कि वह इस प्रकार मुझे असमंजस में डाले। मैं स्वयं किसी से यह आशा नहीं रखता। मैं तो इसे भी सर्वथा अनुचित समझता हूं कि कोई असमय और बिना पूर्व सूचना के मेरे घर आये, चाहे वह मेरा भाई ही क्यों न हो। आपके यहां नित्य दो-चार निठल्ले नातेदार पड़े खाट तोड़ा किये, आपकी जायदाद मटियामेट हो