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प्रेमाश्रम


सूर्य देव अपने आरक्त नेत्रों से यह विषम माया लीला देख रहे थे। उनकी नीरव, पीत किरणें उन दोनो माहत बालको पर इस भाँति पड़ रही थी मानो कोई शोकविह्वल प्राणी उनके गले से लिपट कर रो रहा हो।



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इस शौकाघात ने लाला प्रभाशंकर को सजा-विहीन कर दिया। दो सप्ताह बीत चुके थे, पर अभी तक घर से बाहर न निकले थे। दिन के दिन चारपाई पर पड़े छत की ओर देखा करते, रातें करवटे बदलने में कट जातीं। उन्हें अपना जीवन अत्र शून्य सा जान पड़ता था। आदमियों की सूरत से अरुचि थी, अगर कोई सात्वना देने के लिए भी जाता तो मुंह फेर लेते। केवल प्रेमशंकर ही एक ऐसे प्राणी थे जिसका आना उन्हें नागवार न मालूम होता था, इसलिए कि वह समवेदना का एक शब्द भी मुंह से न निकालते। सच्ची समवेदना मौन हुआ करती है।

एक दिन प्रेमशंकर आ कर बैठे तो लाला जी को कपड़े पहनते देखा, द्वार पर एक्का भी खड़ा था जैसे कहीं जाने की तैयारी हों। पूछा, कही जाने का इरादा है क्या।

प्रभाशंकर ने दीवार की ओर मुंह फेर कर कहा-हाँ, जाता हूँ उसी निर्दयी दयाशंकर के पास, उसी की चिरौरी-विनती करके घर लाऊँगा। कोई यहाँ रहने वाला भी तो चाहिए। मुझसे गृहस्थी का बोझ नही सँभाला जाता। कमर टूट गयी, वलहीन हो गया। प्रतिज्ञा भी तो की थी कि जीते जी उसका मुंह न देखूँगा, लेकिन परमात्मा को मेरी प्रतिज्ञा निवाली मंजूर न थी, उसके पैरों पर गिरना पड़ा। वंश का अन्त हुआ जाता है। कोई नाम लेवा तो रहे, मरने के बाद चुल्लू भर पानी को तो न रोना पड़े, मेरे बाद दीपक तो न बुझ जाय। अब दयाशंकर के सिवाय और दूसरा कौन है, उसी से अनुनय-विनय करूंगा मनाऊँगा, आ कर घर आबाद करे। लड़को के बिना घर भूतों का डेरा हो रहा है। दोनो लड़कियाँ ससुराल ही चली गयी, दोनों लड़के भैरव की भेट हुए, अब किसका मुंह देख कर जी को समझाऊँ। मैं तो चाहे कलेजे पर पत्थर की सिल रख कर बैठ भी रहता, पर तुम्हारी चाची को कैसे समझाऊँ? आज दो हफ्ते से ऊपर हुए उन्होंने दाने की और ताका तक नहीं। रात-दिन रोया करती है। बेटा, मच पूछो तो मैं ही दोनों लड़को का घातक हूँ। वे जैसे चाहते थे रहते थे, जहाँ चाहते थे जाते थे। मैंने कभी उन्हें अच्छे रास्ते पर लगाने की चेष्टा न की। सन्तान का पालन कैसे करना चाहिए, इसकी मैंने कभी चिन्ता न की।

प्रेमशंकर ने करुणाई हो कर कहा-एक्कै का सफर है, आपको कष्ट होगा। कहिए तो मैं चला जाऊँ, कल तक आ जाऊँगा।

प्रभा-वह यो न आयेगा, उसे खीच कर लाना होगा। यह कठोर नहीं, केवल लज्जा के मारे नहीं आता। वहीं पड़ा रोता होगा। भाइयो को बहुत प्यार करता था।

प्रेम-मैं उन्हें जबरदस्ती खीच लाऊँगा। प्रभाशंकर राजी हो गये।

प्रेमशंकर उसी दम चल खड़े हुए। थाना यहाँ से बारह