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प्रेमाश्रम

समझते थे और वकालत की निन्दा करके अपने को धन्य मानते थे। उनकी स्वार्थ वृत्ति को उन्मत्त करने के लिए इतना ही काफी था, पर अब उनकी आँखो के सामने एक ऐसा पुरुष उपस्थित था जो उन्ही का सा विद्वान्, लेख और और वाणी मै उन्हीं का सा कुशल था; पर कितना विनयी, कितना उदार, कितना दयालु, कितना शातचित्त! जो उनकी असाधुता से दुखी हो कर भी उनकी उपेक्षा न करता था। अतएव अब डाक्टर साहब को अपने पिछले अपकारो पर पश्चात्ताप होता था। वह प्रायश्चित्त करके अपयश और कलंक के दाग को मिटाना चाहते थे। उन्हें लज्जावश प्रेमशंकर से अपील के लिए अनुरोध करने का साहस न होता था, पर उन्होने संकल्प कर लिया था कि अपील में अभियुक्तो को छुड़ाने के लिए दिल तोड़ कर प्रयत्न करूंगा। वह अपील के खर्च का बोझ भी अपने ही सिर लेना चाहते थे। महीनो से अपील की तैयारी कर रहे थे, मुकदमे की मिस्ले विचारपूर्वक देख ली थी, जिरह के प्रश्न निश्चित कर लिये थे और अपना कथन भी लिख डाला था। उन्हे इतना मालूम हो गया था कि ज्वालासिंह के आने पर अपील होगी। उनके आने की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे। प्रातः काल का समय था। डाक्टर साहब को ज्वालासिंह के आने की खबर मिल गयी थी। उनसे मिलने के लिए जा ही रहे थे कि सैयद ईजाद हुसेन का आगमन हुआ। उनकी सौम्यभूति पर काला चुगा बहुत खुलता था। सलाम-जन्दगी के बाद सैयद साहब ने ईजाद अली की ओर सन्देह की दृष्टि से देख कर कहा--- आपने देखा, इन दोनों भाइयो ने रानी गायत्री को कैसा शीशे में उतार लिया? एक साहब ने रियासत हाथ में कर ली और दूसरे साहब दो हजार रुपये के मौरूसी बसीकेदार बन गये। लौंडे की तालीम में ज्यादा से ज्यादा चार-पाँच सौ खर्च हो जायेंगे, और क्या? दुनिया मे कैसे-कैसै बगुला भगत छिपे हुए हैं।

ईजाद हुसेन को बदगुमामी का मर्ज था। जब से उन्हें यह बात मालूम हुई थी, उनकी छाती पर साँप लौट रहा था, मानो उन्ही की जेब से रुपये निकाले जाते हैं। यह कितना अनर्थ था कि प्रेमशंकर को तो दो हजार रुपये महीने बिना हाथ पैर हिलाये घर बैठे मिल जायें और उस गरीब को इतना छल-अपच करने पर भी रोटियों की चिन्ता लगी रहे!

डाक्टर महाशय ने व्यंग भाव से कहा---इस मौके पर आप चूक गये। अगर आप रानी साहिबा की खिदमत में डेपुटेशन ले कर जाते तो इत्तहादी यतीमखाने के लिए एक हजार का वसीका जरूर बँध जाता।

ईजाद हुसेन—-अप तो जनाब मजाक करते हैं। मैं ऐसा खुशनसीब नही हैं। मगर दुनिया में कैसे-कैसे लोग पड़े हुए है जो तर्क का नूरानी जाल फैला कर सोने की चिड़िया ला लेते है।

डाक्टर साहब ने तिरस्कार की दृष्टि से देख कर कहा--लाला ज्ञानशंकर की निस्बत

-त्याग।