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प्रेमाश्रम


माया—मैं तो देखता हूँ आप इन चीजों के बिना ही सम्मान की दृष्टि से देखें जाते है। सभी आपकी इज्जत करते है। मेरे स्कूल के लड़के भी आप का नाम आदर से लेते है, हालां कि शहर के और बड़े रईसों की हँसी उड़ाते हैं। मेरे लिए किसी विशेष चीज की जरूरत क्यों हो?

माया के प्रत्येक उत्तर पर प्रेमशंकर का हृदय अभिमान से फूला पड़ता था। उन्हें आश्चर्य होता था कि इस लड़के में संतोष और त्याग का भाव क्योंकर उदित हुआ? इस उम्र में तो प्राय लड़के टीमटाम पर जान देते हैं, सुन्दर वस्त्रों से उनका जी नहीं भरता, चमक-दमक की वस्तुओं पर लट्ट हो जाते हैं। यह पूर्व संस्कार है। और कुछ नहीं निरुत्तर हो कर बोले--रानी गायत्री की यही इच्छा थी, नहीं तो इतने रुपयें क्यों खर्च करती?

माया–यदि उनकी यह इच्छा होती तो क्या वह मुझे ताल्लुकेदारों के स्कूलों में नहीं भेज देती? मुझे आपकी सेवा में रखने से उनका उद्देश्य यही होगा कि मैं आपके ही पदचिह्न पर चलें।

प्रेम---जो यह रुपये खर्च क्यों कर होगे?

माया----इसका फैसला रानी अम्माँ ने आप पर ही छोड़ दिया है। मुझे आप उसी तरह रखिए जैसे आप अपने लड़के को रखते हैं। मुझे ऐसी शिक्षा न दीजिए और ऐसे व्यसनों में न डालिए कि मैं अपन दीन प्रजा के दुख-दर्द में शरीक न हो सके। आपके विचार में मेरी शिक्षा की यही सबसे उत्तम विवि है?

प्रेम----नहीं, मेरा विचार तो ऐसा नहीं, लेकिन दुनिया को दिखाने के लिये ऐसा ही करना पड़ेगा। नहीं तो लोग यही कहेंगे कि मैं तुम्हारी वृत्ति का दुरुपयोग कर रहा हूं।

माया--तो आप मुझे इस ढंग पर शिक्षा देना चाहते है जिसे आप स्वयं उपयोगी नही समझते। लोगों के दुराक्षेपों से बचने के ही लिए आप ने यह व्यवस्थाएँ की हैं।

प्रेमशंकर शरमाते हुए बोले-ही, बात तो कुछ ऐसी ही है।

माया--मैंने अपने वजीफे के खर्च करने की और भी विधि सोची है। आप बुरा न माने तो कहूँ।

प्रेम–हाँ-ही, शौक से कहो। तुम्हारी बातों से मेरी आत्मा प्रसन्न होती है। मैं तुम्हें इतना विचारशील न समझता था।

ज्वालासिंह---इस उम्र में मैंने किसी को इतना चैतन्य नहीं देखा।

शीलमणि प्रेमशंकर की ओर मुँह करके मुस्कुरायी और बोली—इस पर आप की ही परछायी पड़ी है।

माया- मैं चाहता हूँ कि मेरा वजीफा गरीब लड़को की सहायता में खर्च किया जाय। दस-दस रुपये की १९९ वृत्तियाँ दी जाये तो मेरे लिए दस रुपये बच रहेंगे। इतने में मेरा काम अच्छी तरह चल सकता है।

प्रेमशंकर पुलकित हो कर बोले--बेटा, तुम्हारी उदारता घन्य है, तुम देवात्मा हो।