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प्रेमाश्रम

रहा है। पाप का अग्नि कुंड जला कर मेरे लाल को उसमें झोक देता है। मैं अपनी आँखो यह सर्वनाश नहीं देख सकती? बहिन, तुमसे आज कहती हूँ, मुन्नी के जन्म के बाद इस पापी ने मुझे न जाने क्या खिला कर मेरी कोख हर ली, न जाने कौन सा अनुष्ठान कर दिया? वहीं बिप इसने पहले ही खिला दिया होता, वहीं अनुष्ठान पहले ही करा दिया होता तो आज यह दिन क्यों आता? बांझ रहना इमसे कहीं अच्छा है कि सन्तान गोद से छिन जाय। हाय मेरे लाल को कौन बचायेगा? मैं अब उसे नहीं बचा सकती। आग की लहरें उसकी ओर दौड़ी चली आती है। बहिन, तुम जा कर उस निर्दयी को समझाओ। अगर अब भी हो सके तो मेरे माया को बचा लो। नहीं, अब तुम्हारे बस की बात नहीं है, यह पिशाच अब किसी के समझाने से ने मानेगा। उसने मन में ठान लिया है तो आज ही सब कुछ कर डालेगा।

यह कहते-कहते वह उठी और खिड़की से नीचे देखा। दीवानखाने के सामने वाले सहन की सफाई हो रही थी, दरिया झाड़ी जा रही थी। उसकी आँखें माया को खोज रही थी, वह माया को अपने हृदय में चिपटाना चाहती थी। माया न दिखायी दिया। एक क्षण में मोटर सहन में आयी, गायत्री और ज्ञानशंकर उस पर आ बैठे। माया भी एक मिनट में दीवानखाने से निकला और मोटर पर आ बैठा। विद्या ने आतुरता से पुकारा-माया, माया! यहाँ आओ! लेकिन या तो माया ने सुना ही नहीं या सुन कर ध्यान ही नहीं दिया। वह बड़ी पुकारती ही रही और मोटर हवा हो गयी। विद्या को ऐसा जान पड़ा मानो पानी में पैर फिसल गये। वह तुरत पछाड़ खा कर गिर पड़ी। लेकिन श्रद्धा ने संभाल लिया, चौट नही आयी।

थोडी देर तक विद्या मूर्छित दशा में पड़ी रही। श्रद्धा उसका सिर गोद में लिय बैठी रोती रही। मैं अपने को अभागिनी समझती थी। इस दुखिया की विपत्ति और भी दुस्सह है। किसी रीति से उन्हें (प्रेमशंकर को) यह खबरे होती तो वह अवश्य गायत्री को समझाते। गायत्री उनका आदर करती है। शायद मान जाती, लेकिन इस महापुरुष के सामने उनकी भेट तो गायत्री से नही हो सकती। इसी भय से तो घर के बाहर निकल गये हैं कि काम में कोई विघ्न-बाधा न पड़े। कुछ नहीं, यह सब इसी की भूल है। ज्यों ही मैंने इससे गोद लेने की बात कही, इसे उसी क्षण बाहर जा कर दोनों को फटकारना और माया का हाथ पकड़ कर खीच लाना चाहिए था। मजाल थी कि मेरे पुत्र को कोई मुझसे छीन ले जाता। सहसा विद्या ने आँखे खोल दी और क्षीण स्वर से बोली-बहिन, अब क्या होगा?

श्रद्धा होने को अब भी सब कुछ हो सकता हैं। करनेवाला चाहिए।

विद्या--अब कुछ नहीं हो सकता। सब तैयारियाँ हो रही हैं, चाचा जी न जाने कैसे राजी हो गये।

श्रद्धा- मैं जरा जा कर कहारो से पूछती हूँ कि कब तक आने को कह गये है।

विद्या—-शाम होने के पहले ये लोग कभी न लौटेंगे। माया को हटा देने के