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प्रेमाश्रम

वह केवल अभी तक राय साहब वाली दुर्घटनाओं को ही इस मनोमालिन्य का कारण समझ रहे थे।

विद्या ने गायत्री मे अलग हट कर उसके नख-शिख को चुभती हुई दृष्टि से देखी। उमने उसे छह साल पहले देखा था। तब उसका मुख-कमल मुझया हुआ था, वह सन्ध्याकाल के सदृश उदास, मलिन, निश्चेष्ट थी। पर इस समय उसके सुख पर खिले हुए कमल की शोभा थी। वह उषा की भाँति विकसित, तेजोमय, सचेप्ट स्फूति से भरी हुई दीख पड़ती थी। विद्या इस विद्युत प्रकाश के सम्मुख दीपक के समान ज्योतिहीन मालूम होती थी।

गायत्री ने पूछा--संगीत सभा का तो खूब आनन्द उठाया होगा?

ज्ञानशंकर का हृदय धकाधक करने लगा। उन्होंने विद्या की ओर बढ़ी दीन दृष्टि से देखा पर उसकी जमीन की तरफ थी, बोली–मैं तो कभी संगीत के जलसे में गयी ही नहीं। हाँ, इतना जानती हैं कि जलसा कुछ फीका रहा। लाला जी बहुत बीमार हो गये और एक दिन भी जलसे मैं शरीक न हो सके।

गायत्री---मेरे न जाने में नाराज तो अवश्य ही हुए होगे?

विद्या--तुम्हें उनके नाराज होने की क्या चिन्ता है? वह नाराज हो कर तुम्हारा क्या बिगाड़ सकते हैं?

यद्यपि यह उत्तर काफी तौर पर द्वेषमूलक था, पर गायत्री अपनी कृष्णलीला की चर्चा करने के लिए इतनी उतावली हो रही थी कि उसने इस पर कुछ ध्यान न दिया। बोली, क्या कहूँ तुम कल न आ गयी नहीं तो यहाँ कृष्णलीला का आनन्द उठाती। भगवान् की चुछ ऐसी दया हो गयी कि सारे शहर में इस लीला की वाह-वाह मच गयी। किसी प्रकार की त्रुटि न रही। रंगभूमि तो तुमको अभी दिखाऊँगी पर उसकी मजावद ऐसी मनोहर थी कि तुमसे क्या कहूँ। केवल पर्यों के बनवाने में हजारो रुपये पर्च हो गये। बिजली के प्रयाग से सारा मंडप ऐसा जगमगा रहा था कि उसकी शोभा देखती ही बनती थी। मैं इतनी बड़ी सभी के सामने आते डरती थी, पर कृष्ण भगवान् ने ऐमी कृपा की कि मेरा पार्ट बने बढ़ कर रहा। पूछो बाबू जी से, शहर में उसका वैसी चर्चा हो रही है। लोगों ने मुझमें एक-एक पद कई-कई बार गवाया।

विद्या ने व्यक्त भाव से कहा--मेरा अभाग्य था कि कल न आ गयी।

गायत्री-एक बार फिर वही लीला करने का विचार है। अबकी तुम्हे भी कोई न कोई पार्ट देंगी।

विद्या--नहीं, मुझे क्षमा करना। नाटक खेल कर स्वर्ग में जाने की मुझे आशा नहीं है।

गायत्री विस्मित हैं। कर विद्या का मुंह ताकने लगी। लेकिन ज्ञानशंकर मन में मुग्ध हुए जाते थे। दोनो बहिनों में वह जो भेद-भाव डालना चाहते थे वह आप ही आप आरोपित हो रहा था। ये शुभ लक्षण थे। गायत्री से बोले-मेरे विचार में यहाँ