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प्रेमाश्रम


इतने मे मस्ता पैसे ले कर आ गया। प्रेमशंकर ने लकड़ी के दाम दिये। बुढिया लकड़ी के साथ आशीर्वाद दे कर चली गयी। द्वार पर पहुँच कर उसने फिर कहा–भैया भूल मत जाना, धरम का काम है, तुम्हे बड़ा जस होगा।

उनके चले जाने के बाद कुछ देर तक प्रेमशंकर और प्रियनाथ दोनों मौन बैठे रहे। प्रेमशंकर को मुंह संकोच ने बन्द कर दिया था, डाक्टर को लज्जा ने।

सहसा प्रियनाथ खड़े हो गये और निश्चयात्मक भाव से बोले- भाई साहब, अवश्य अपील कीजिए। आप आज ही इलाहाबाद चले जाइए। आज के दृश्य ने मेरे हृदय को हिला दिया। ईश्वर ने चाहा तो अब की सत्य की विजय होगी।



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डाक्टर इर्फानअली उस घटना के बाद हवा खाने न जा सके, सीधे घर की ओर चले। रास्ते भर उन्हे संशय हो रहा था कि कही उन उपद्रवियों से फिर मुठभेड़ न हो जाय नही तो अद की जान के लाले पड़ जायेंगे। आज बड़ी खैरियत हुई कि प्रेमशंकर मौजूद थे, नही तो इन बदमाशों के हाथ मेरी न जाने क्या दुर्गति होती। जब वह अपने घर पर सकुशल पहुँच गये और बरामदे मे आराम कुर्सी पर लेटें तो इस समस्या पर आलोचना करने लगे। अब तक वह न्याय और सत्य के निर्भीक समर्थक समझे जाते थे। पुलिस के विरुद्ध सदैव उनकी तलवार निकली ही रहती थी। यही उनकी सफलता का तत्त्व था। वह बहुत अध्ययनशील, तत्त्वान्वेषी, ताकिक वकील न थे, लेकिन उनकी निर्भीकता इन सारी त्रुटियों पर पर्दा डाल दिया करती थी। पर इस लखनपुरवाले मुकदमे में पहली बार उनकी स्वार्थपरता की कलई खुली। पहले वह प्राय पुलिस से हार कर भी जीत में रहते थे, जनता का विश्वास उनके ऊपर जमा रहता था, बल्कि और बढ़ जाता था। आज पहली बार उनकी सच्ची हार हुई। जनता का विश्वास उनपर से उठ गया। लोकमत ने उनका तिरस्कार कर दिया। उनके कानो मे उपद्रवियों के ये शब्द गूंज रहे थे, इन दोनों का खून इन्हीं की गर्दन पर है। इफनअली उन मनुष्यों मे न थे जिनकी आत्मा ऋद्धि-लालसा के नीचे दब कर निर्जीव हो जाती है। वह सदैव अपने इष्ट-मित्रों से कठिनाइयों का रोना रोया करते थे और निस्सन्देह ये आँसू उनके हृदय से निकलते थे। वह बार-बार इरादा करते थे कि इस पेशे को छोड़ दे, लेकिन जुआरियों की प्रतिज्ञा की भाँति उनका निश्चय भी दृढ न होता था, बल्कि दिनो-दिन वह लोभ में और भी डूबते जाते थे। उनकी दशा उस पथिक की सी थी जो सन्ध्या होने के पहले ठिकाने पर पहुँचने के लिए कदम तेजी से बढाता है। इर्फानअली वकालत छोड़ने के पहले इतना धन कमा लेना चाहते थे कि जीवन सुख से व्यतीत हो। अतएव वह लोभमार्ग में और भी तीव्र गति से चल रहे थे।

लेकिन आज की घटना ने उन्हें मर्माहत कर दिया। अब तक उनकी दशा उन

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