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प्रेमाश्रम

नोन तेल लाते है। वह भी अब घर से बाहर नहीं निकलता। दूकान उठा दी है। पर मे बैठा न जाने क्या-क्या करता है। जो दूसरे को गड्ढा खोदेगा, उसके लिए कुओं तैयार है। देखा तो नही पर सुनती हूँ, जब से यह मामला उठा है उसके घर मे किसी को चैन नहीं है। एक न एक परानी के सिर भूत आया ही रहता है। ओझे-सयाने रात-दिन जमा रहते हैं। पूजा-पाठ, जप-तप हुआ करता है। एक दिन बिलासी से रास्ते में मिल गया था। रोने लगा। बहुत पछताता था कि मैंने दूसरो की बातो में आ कर यह कुकर्म किया। मनोहर उसके गले पड़ा हुआ है। मारे डर के साँझ से केवाड़ बन्द हो जाता है। रात को बाहर नहीं निकलता। मनोहर रात-दिन उसके द्वार पर खड़ा रहता है, जिसको पाता है उसी को चपेट लेता है। सुनती हूँ, अब गांव छोड़ कर किसी दूसरे गाँव मे बसनेवाला है।

प्रेमशंकर यह बातें सुन कर गहरे सोच मे डूब गये। मैं कितना बेपरवाह हूँ। इन बेचारो को सजा पाये हुए साल भर होने आते हैं और मैंने उनके बाल-बच्चो की सुधि तक न ली। वह सब अपने मन में क्या कहते होंगे? ज्ञानशंकर से बात हार चुका हूँ। लेकिन अब वहां जाना पड़ेगा। अपने बचन के पीछे इतने दुखियारो को मरने दूं यह नहीं हो सकता। इनका जीवन मेरे बचन से कहीं ज्यादा मूल्यवान है। अक-स्मात् बुढिया ने कहा-कहो भैया, अब कुछ नहीं हो सकता? लोग कहते हैं, अभी किसी और बड़े हाकिम के यहाँ फरियाद लग सकती है।

प्रेमाशंकर ने इसका कुछ उत्तर न दिया। पन का प्रबन्ध तो बहुत कठिन न था, लेकिन उन्हे अपील से उपकार होने की बहुत कम आशा थी। वकीलों की भी यही राय थी । इसीलिए इस प्रश्न को टाल आते थे। डाक्टर साहब से भी उन्होने अपील की चर्चा कमी न की थी। प्रियनाथ उनके मुख की ओर ध्यान से देख रहे थे। उनके भन के भावों को भांप गये और उनके असमंजस को दूर करने के लिए बोले- हाँ, फरियाद लग सकती है, उसका बन्दोबस्त हो रहा है, धीरज रखखो, जल्दी ही अपील दायर कर दी जायेगी।

वृद्धा-बेटा, दूधो नहाव पूतो फलो। सुनती हूँ कोई बड़ा डाक्टर था, उसी ने जमींदार से कुछ ले दे कर इन गरीबों को फंसा दिया। न हो, तुम दोनों उसी डाक्टर के पास जा कर हाथ-पैर जोड़ो, कौन जाने तुम्हारी बात, मान जाये। उसके आगे भी तो बाल-बच्चे होगे? क्यो हम गरीबों को बेकसूर मारता है? किसी की हाय बटोरना अच्छा नहीं होता।

प्रेमशंकर जमीन में गड़े जा रहे थे। डाक्टर साहब को कितना दुख हो रहा होगा, अपने मन में कितने लज्जित हो रहे होगे। कही बुढिया गाली न देने लगे, इसे कैसे चुप कर दूं? इन विचारों से वह बहुल विकल हो रहे थे, किन्तु प्रियनाथ के चेहरे पर। उदारता झलक रही थी, नेत्रों से वात्सल्य-भाव प्रस्फुटित हो रहा था। मुस्कुराते हुए बोले-हम लोग उस डाक्टर के पास गये थे। उसे खूब समझाया। है तो लालची, पर कहने-सुनने से राह पर आ गया है, अब सच्ची गवाही देगा।