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प्रेमाश्रम

है। मेरे जाहिर में कोई तबदीली नहीं हुई । नाम वही है, लम्बी दाढी वही है, लिबासपोशाक वही है, पर मेरे रूह की काया पलट गयी। जाहिर है मुगालते में न आइए, दिल में बैठ कर देखिए, वहाँ मोटे हरूफ मे लिखा हुआ है--'हिन्दी है हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा।'

लडको और साजिन्दो ने इकबाल की गजल अलापनी शुरू की। सभा लोट-पोट हो गयी। लोगों की आँखो से गौरव की किरणें सी निकलने लगी, कोई मूँछो पर ताव देने लगा, किसी ने बेबसी की लम्बी साँस खीची, किसी ने अपनी भुजाओ पर निगाह डाली और कितने ही सहृदय सज्जनो की आँखें भर आयी । विशेष करके इस मिसरे पर--'हम बुलबुले है इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा' तो सारी मजलिस तडप उठी, लोगो ने कलेजे थाम लिये, “वन्देमातरम्” से भवन गूँज उठा । गाना बन्द होते ही फिर व्याख्यान शुरू हुआ--

‘भाइयो, मजहब दिल की तस्कीन के लिए है, दुनिया कमाने के लिए नही, मुल्की हुकूम हासिल करने के लिए नही । वह आदमी जो मजहब की आड़ में दौलत और इज्जत हासिल करना चाहता है, अगर हिन्दू है तो मलिच्छ है, मुसलमान है तो काफिर हैं। हाँ काफिर है, मजदूर है, रूसियाह है।'

करतल ध्वनि से पडाल काँप उठा।

'हम सत्तर पुश्तो से इसी सरजमीन का दाना खा रहे है, इसी सरजमीन के आब व गिल (पानी और मिट्टी) से हमारी शिरशिरी हुई है। तुफ है उस मुसलमान पर जो हिजाज और इराक को अपना वतन कहता है।'

फिर तालियाँ बजी । एक घटे तक व्याख्यान हुआ । सैयद ने सारी सभा पर मानो मोहिनी डाल दी । उनकी गौरवयुक्त विनम्रता, उनकी निर्भीक यथार्थवादिता, उनकी मीठी चुटकियाँ, उनकी जातीयता में डूबी हुई वाक्य-कुशलता, उनकी उत्तेजनापूर्ण आलोचना, उनके स्वदेशाभिमान, उसपर उनके शब्दप्रवाह, भायोत्कर्ष और राष्ट्रीय गाने ने लोगो को उन्मत्त कर दिया । हृदयों में जागृति की तरगे उठने लगी। कोई सोचता था, न हुए मेरे पास एक लाख रुपये नही तो इसी दम लुटा देता। कोई मन में कहता था, बाल-बच्चो की चिन्ता न होती तो गले में झोली लटका कर जाति के लिए भिक्षा माँगता ।

इस तरह जातीय भावो को उभाड कर भूमि को पोली बना कर सैयद साहब मतलब पर आये, बीज डालना शुरू किया।

‘दोस्तो, अब मजहबपरवरी का जमाना नहीं रहा। पुरानी बातो को भूल जाइए । एक जमाना था कि आरियों ने यहाँ के असली वाशिन्दो पर सदियों तक हुकूमत की, आज वही शूद्र आरियों में घुले-मिले हुए है। दुश्मनों को अपने सलूक से दोस्त बना लेना आपके बुजुर्गों का जोहर था । वह जोहर आप में मौजूद है। आप बारहा हमसे गले मिलने के लिए बढे, लेकिन हम पिंदरम मुलताबूद के जोश मे हमेशा आप से दूर भागते रहे । लेकिन दोस्तों, हमारी बदगुमानी से नाराज न हो । तुम जिन्दा कोम हो। तुम्हारे दिल में दर्द हैं, हिम्मत है, फैयाजी है। हमारी तगदिली को भूल जाइए ।