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प्रेमाश्रम

देना पड़ेगा। बस, यही चाहता हूँ कि घर बैठे १००० रु० माहवारी रकम मिल जाया करे। अगर प्रोफेसरी से १००० रु० भी मिले तो भी काफी होगा। नहीं, अभी छोडने का वक्त नही आया । ३ साल तक सख्त मेहनत करने के बाद अलबत्ता छोडने का इरादा कर सकता हूँ। लेकिन इन तीन बरसों तक मुझे चाहिए कि रियायत और मुरौवत को बालायताक रख दूँ। सबसे पूरा मेहनताना लूँ, वरना आजकल की तरह फँसता रहा तो जिन्दगी भर छुटकारा न होगा ।

हाँ, तो आज इस मुकदमे में बहस होगी। उफ ! अभी तक तैयार नहीं हो सका। गवाहो के बयानो पर निगाह डालने का भी मौका न मिला । खैर, कोई मुजायका नही। कुछ न कुछ बातें तो याद ही हैं। बहुत कुछ उधर के वकील की तकरीर से सूझ जायेंगी । जरा नमक मिर्च और मिला दूँगा, खासी बहस हो जायगी। यह तो रोज का ही काम है, इसकी क्या फिक्र ...

इतने मे अमौली के राजा साहब की मोटर आ पहुँची। डाक्टर साहब ने बाहर निकल कर राजा साहब का स्वागत किया। राजा साहब अँगरेजी मे कोरे, लेकिन अँगरेजी रहन-सहन, रीति-नीति में पारगत थे। उनके कपडे विलायत से सिल कर आते थे । लड़को को पढ़ाने के लिए लेडियाँ नौकर थी और रियासत का मैनेजर भी अँगरेज था। राजा साहब का अधिकांश समय अँगरेजी दुकानो की सैर मे कटता था। टिकट और सिक्के जमा करने का शौक था । थियेटर जाने में कभी नागा न करते थे। कुछ दिनो से उनके मैनेजर ने रियासत की आमदनी पर हाथ लपकाना शुरू किया था। इसलिए उन्हें हटाना चाहते थे; किन्तु अँगरेज अधिकारियो के भय से साहस न होता था । मैनेजर स्वयं राजा को कुछ न समझता था, आमदनी का हिसाब देना तो दूर रहा । राजा साहब इस मामले को दीवानी में लाने का विचार कर रहे थे। लेकिन मैनेजर साहब की जज से गहरी मैत्री थी, इसलिए अदालत के और वकीलों ने इस मुकदमे को हाथ में लेने से इनकार कर दिया था। निराश हो कर राजा साहब ने इर्फान अली की शरण ली थी । डाक्टर साहब देर तक उनकी बातें सुनते रहे। बीच-बीच में तस्कीन देते जाते थे । आप घबरायें नहीं । मैं मैनेजर साहब से एक-एक कौडी वसूल कर लूँगा । यहाँ के वकील दब्बू है, खुशामदी टट्टू--पेशे को बदनाम करनेवाले । हमारा पेशा आजाद है । हक़ की हिमायत करना हमारा काम है, चाहे बादशाह से ही क्यो न मुकाबला करना पड़े। आप जरा भी तरहृद न करें। मैं सब बाते ऐसी खूबसूरती से तय कर दूँगा कि आप पर छीटा भी न आने पायेगी । अकस्मात् तार के चपरासी ने आ कर डाक्टर साहब को एक तार का लिफाफा दिया । ज्ञानशकर ने एक मुकदमे की पैरवी करने के लिए ५०० रू० रोज पर बुलाया था।

डाक्टर महोदय ने राजा साहब से कहा यह पेशा बडी मूजी है। कभी आराम से बैठना नसीब नहीं होता। रानी गायत्रीदेवी का तार है, गोरखपुर बुला रही है।

राजा--मैं अपने मुकदमे को मुलतबी नही कर सकता। मुमकिन है मैनेजर कोई और चाल खेल जाय।