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प्रेमाश्रम

इतने में भवानीसिंह भी आ पहुँचे, जो मुखिया थे । यह विवाद सुना तो बोले--क्यों लड़े मरते हो यारो, क्या फिर दिन न मिलेगा ? मालिक से कुशल-क्षेम पूछना तो दूर रहा, कुछ सेवा-टहल तो हो न सकी, लगे आपस में तकरार करने ।

इस सामयिक चेतावनी ने सबको शान्त कर दिया। कोई दौड कर झोपडे में झाडू लगाने लगा, किसी ने पलँग डाल दिया, कोई मोढे निकाल लाया, कोई दौड कर पानी लाया, कोई लालटेन जलाने लगा । भवानीसिंह अपने घर से दूध लाये । जब तीनो सज्जन जलपान करके आराम से बैठे तो ज्वालासह ने कहा, इन आदमियो से आप क्योकर काम लेते हैं ? मुझे तो सभी निकम्मे जान पड़ते हैं ।

प्रेमशकर--जी नही, यह सब लड़ते हैं तो क्या, खूब मन लगा कर काम करते है। दिन भर के लिए जितना काम बता देता हूँ उतना दोपहर तक ही कर डालते है।

लीला प्रभाशकर जी से डर रहे थे कि कहीं प्रेमशकर अपने बरी हो जाने के विषय में कुछ पूछ न बैठे। वह इस रहस्य को गुप्त हीं रखना चाहते थे। इसलिए वह ज्वालासिंह से बातें करने लगे । जब से इनकी बदली हो गयी थीं, इन्हे शान्ति नसीब न हुई थीं। ऊपरवाले नाराज, नीचेवाले नाराज, जमीदार नाराज । बात-बात पर जवाब तलव होते थे। एक बार मुअत्तल भी होना पड़ा था। कितना ही चाहा कि यहाँ से कही और भेज दिया जाऊँ, पर सफल न हुए। नौकरी से तग आ गये थे और अब इस्तीफा देने का विचार कर रहे थे। प्रभाशकर ने कहा, भूल कर भी इस्तीफा देने का इरादा न करना, यह कोई मामूली ओहदा नही है। इसी ओहदे के लिए बड़े-बड़े रईसो और अमीरो के माथे घिमे जाते हैं, और फिर भी कामना नही पूरी होती । यह सम्मान और अधिकार आपको और कहाँ प्राप्त हो सकता है ?

ज्वाला--लेकिन इस सम्मान और अधिकार के लिए अपनी आत्मा का कितना हनन करना पड़ता है? अगर नि स्पृह भाव से अपना काम कीजिए तो बडे-बड़े लोग पीछे पड़ जाते हैं। अपने सिद्धान्तों का स्वाधीनता से पालन कीजिए तो हाकिम लोग त्यौरियाँ बदलते हैं। यहाँ उसको सफलता होती है जो खुशामदी और चलता हुआ है, जिसे सिद्धान्तो की परवाह नहीं। मैंने तो आज तक किसी सहृदय पुरुष को फलते-फूलते नहीं देखा। बस, शतरजवाजी की चाँदी है। मैंने अच्छी तरह आजमा कर देख लिया । यहाँ मेरा निर्वाह नहीं है। अब तो यही विचार है कि इस्तीफा दे कर इसी बगीचे मे आ बसूँ और बाबू प्रेमशकर के साथ जीवन व्यतीत करूँ, अगर इन्हें कोई आपत्ति न हो।

प्रेमशकर--आप शौक से आइए, लेकिन खूब दृढ हो कर आइएगा ।

ज्वालासिंह--अगर कुछ कोर-कसर होगी तो यहाँ पूरी हो जायगी ।

प्रेमशकर ने अपने आदमियो से खेती-बारी के सम्बन्ध में कुछ बातें की और ८ बजते-बजते लाला प्रभाकर के घर चले।