पृष्ठ:प्रेमाश्रम.pdf/२१०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१५
प्रेमाश्रम

गला रेतना सिखा देती है। आपको अल्लाह ने सच्ची विद्या दी थी। उसके पीछे लोग आपके भी दुश्मन हो गये ।

दुखरन--यह सब मनोहर की करनी है। गाँव भर को डुबा दिया।

बलराज--न जाने उनके सिर कौन सा भूत सवार हो गया ? गुस्सा हमें भी आया था, लेकिन उनको तो जैसे नशा चढ़ जाय ।

डपट--बराबर की विसात ही क्या थी। उसके पीछे यह तूफान !

कादिर--यारो ? ऐसी बातें न करो । बेचारे ने तुम लोगों के लिए, तुम्हारे हक की रक्षा करने के लिए यह सब कुछ किया । उसकी हिम्मत और जीवट की तारीफ तो नहीं करते और उसकी बुराई करते हो। हम सब के सब कायर हैं, वहीं एक मर्द है ।

कल्लू--विसेसर की मति ही उल्टी हो गयी।

दुखरन--बयान क्या देता है जैसे कोई तोता पढ़ रहा है।

डपट--क्या जाने किसके लिए इतना डरता है ? कोई आगे पीछे भी तो नहीं है।

कल्लू--अगर यहाँ से छूटा तो बच्चू के मुँह में कालिख लगा के गाँव भर में घुमाऊँगा।

डपट--ऐसा कंजूस है कि भिकमंगे को देखता है तो छछुन्दर की तरह घर में जाकर दवक जाता है ।

कल्लू--सहुआइन उसकी भी नानी हैं। बिसेसर तो चाहे एक कौड़ी फेंक भी दे, वह अकेली दुकान पर रहती हैं तो गालियाँ छोड़ और कुछ नहीं देती । पैसे का सौदा लेने जाओ तो घेले का देती है। ऐसी डाँडी़ मारती है कि कोई परख ही नहीं सकता ।

बलराज--क्यों कादिर दादा, कालेपानी जा कर लोग खेती-बारी करते हैं न ?

कादिर--सुना है वहाँ ऊख बहुत होती है।

बलराज--तब तो चाँदी हैं। खूब ऊख बोयेंगे ।

कल्लू-–लेकिन दादा, तुम चौदह वरस थोड़े ही जियोगे । तुम्हारी कबर कालेपानी में ही बनेगी।

कादिर--हम तो लौट आना चाहते हैं, जिसमें अपनी हड़ावर यहीं दफन हो । वहाँ तुम लोग न जाने मिट्टी की क्या गत करो।

दुखरन--भाई, मरने-जीने की बात मत करो । मनाओं कि भगवान सबको जीता-जागता फिर अपने बाले बच्चों में ले आये ।

बलराज--कहते हैं वहाँ पानी बहुत लगता है।

दुखरन--यह सब तुम्हारे बाप की करनी है। मारा, गाँव भर का सत्यानाश कर दिया।

अकस्मात् कमरे का द्वार खुला और जेल के दारोगा ने आ कर कहा, बाबू प्रेमशंकर, आपके ऊपर से सरकार ने मुकदमा उठा लिया । आप बरी हो गये । आपके घरवाले बाहर खड़े हैं।

प्रेमशंकर को ग्रामीणों के सरल वार्तालाप में बड़ा आनन्द आ रहा था । चौक पड़े । ज्ञानशंकर और ज्वालासिंह के बयान उनके अनुकूल हुए थे, लेकिन यह आशय