पृष्ठ:प्रेमाश्रम.pdf/१९३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९८
प्रेमाश्रम

है। दिल को खूब सँभालो। अपना काम करके सीधे यहाँ चले आना। अँधेरी रात है। किसी की नजर भी नहीं पड़ सकती। थानेदार तुम्हें डरायेंगे, लेकिन खबरदार, डरना मत। बरा गाँव के लोगों से मेल रखोगे तो कोई तुम्हारा बाल भी बाँका न कर सकेगा। दुखरन भगत अच्छा आदमी नहीं है, उससे चौकन्ने रहना। हाँ, कादिर भरोसे का आदमी है। उसकी बातों का बुरा मत मानना। मैं तो फिर लौट कर घर न आऊँगा। तुम्हीं घर के मालिक बनोगे। अब वह लड़कपन छोड़ देना, कोई घार बात कहे तो गम खाना। ऐसा कोई काम न करना कि बाप-दादे के नाम को कलंक लगे। अपनी घरवाली को सिर मत चढ़ाना। उसे समझाते रहना कि सास के कहने में है। मैं तो देखने न आऊँगा, लेकिन इसी तरह घर में राड़ मचता रहो तो घर मिट्टी में मिल जायेगा।

बलराज ने अवरुद्ध स्वर से कहा, दादा मेरी इतनी बात मानों, इस बखत सबुर कर जाओ। मैं कल एक-एक की खोपड़ी तोड़ कर रख दूंगा।

मनोहर—हाँ, तुम्हें कोई मारे तो तुम संसार भर को मार गिरायो। फैजू और कर्तार क्या मिट्टी के लदे है? गौस खाँ भी पलटन में रह चुका है। तुम लकड़ी में उनसे पेश न पा सकोगे। वह देखो हिरना निकल आया। महाबीर जी का नाम ले कर उठ खड़े हो। ऐसे कामों मे आगा-पीछा अच्छा नहीं होता। गाँव के बाहर ही बाहर चलना होगा, नहीं तो कुत्ते भूकेंगे और लोग जाग उठेंगे।

बलराज—मेरे तो हाथ पैर काँप रहे हैं।

मनोहर—कोई परवा नहीं। कुल्हाड़ी हाथ में लोगे तो सब ठीक हो जायेगा। तुम मेरे बेटे हो, तुम्हारा कलेजा मजबूत हैं। तुम्हें अभी जो डर लग रहा है, वह ताप के पहले का जाड़ा है। तुमने कुल्हाड़ा कन्धे पर रखा, महाबीर का नाम ले कर उधर चले, तो तुम्हारी आँखो से चिनगारियाँ निकलने लगेंगी। सिर पर खून सवार हो जायगी। बाज की तरह शिकार पर झपटोगे। फिर तो मैं तुम्हें मना भी करूँ तो न सुनोगे। वह देखो सियार बोलने लगे, आधी रात हो गयी। मेरा हाथ पकड़ लो और आगे आगे चलो। जय महावीर की!



२८

प्रेमशंकर की कृषिशाला अब नगर के रमणीय स्थानों की गणना में थी। यहाँ ऐसी सफाई और सजावट थी कि प्रायः रसिकगण सैर करने आया करते। यद्यपि प्रेमशंकर केवल उसके प्रबन्धकर्ता थे, पर वस्तुतः असामियों की भक्ति और पूर्ण विश्वास ने उन्हें उसका स्वामी बना दिया था। अब अपनी इच्छानुसार नयी-नयी फसले पैदा करते; नाना प्रकार की परीक्षाएँ करते, पर कोई जरा भी न बोलता। और बोलता ही क्यों, जब उनकी कोई परीक्षा असफल न होती थी। जिन खेतों मे मुश्किल से पाँच-सात मन उपज होती थी, वह अब पन्द्रह-बीस मन का औसत पड़ता था। उस पर बाग की आमदनी अलग थी। इन्हीं चार सालों मे कलमी आम, बेर, नारगी आदि के पेड़ो में