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प्रेमाश्रम


कादिर खाँ सावधान हो कर चले गये। यह न समझे कि यहाँ मन में कुछ और ठन गयी है। मनोहर के तुले हुए शब्दों को उन्होंने मानसिक धैर्य का द्योतक समझा।

मनोहर ऐसे उद्दीप्त उत्साह से अपने काम में दत्तचित्त था मानों उसकी युवावस्था का विकास हो गया है। धान के पोलो के ढेर लगते जाते थे। न आगे ताकता था ने पीछे, न किसी से कुछ बाेलता था, न किसी की कुछ सुनता था, न हाथ थकते थे, ने कमर दुखती थी। बलराज ने चिलम भर कर रख दी। तम्बाकू रख-रखे जल गया। बिलासी खाँड़ का रस घोल कर सामने लायी। उसने उसकी ओर देखा तक नहीं, कुत्ता पी गया। आर की धूप थी, देह से चिनगारियाँ निकलती थी, पसीने की धारे बहती थी, किन्तु वह सिर तक न उठाता था। बलराज कभी खेत मे आता, कभी पेड़ के नीचे जा बैठता, कभी चिलम पीता। एक ही अग्नि दोनों के हृदय में प्रज्ज्वलित थी, एक और सुलगती हुई, दूसरी ओर दक्कती हुई। एक ओर वायु के वेग से चंचल, दूसरी ओर निर्बलता से निश्चल। एक ही भावना दोनों के हृदय में थी, एक में उद्दामउच्छृखल, दूसरे में गम्भीर और स्थिर।

दोपहर हुई। बिलासी ने आ कर डरते-डरते कहा, चबेना कर लो।

मनोहर ने सिर झुकाये हुए जवाब दिया—चलो आते हैं।

एक घंटे के बाद बिलासी फिर आ कर बोली, चलो, चबेना कर लो, दिन ढल गया। क्या आज ही सब खेत काट लोगे?

मनोहर ने कठोर स्वर में कहा, यही विचार में है। कौन जाने, कल आये या न आये।

जैसे किसी भरे हुए घड़े में एक कंकर लग जाय और पानी बह निकले, उसी भाँति बिलासी के हृदय में एक चोट सी लगी और आँसू बहने लगे। वह रह-रह कर हाथ मलती थी। हाय न जाने इन्होंने मन में क्या ठान लिया है।

वह कई मिनट तक वहीं खड़ी रोती रही। परिणाम की भयावह विकराल मूर्ति उसके नेत्रों के सामने नाच रही थी। मुंह खोले उसे निगलने को दौड़ती थी और शोक। इस मूर्ति को उसने अपने ही हाथों रचा था। अन्त में वह मनोहर के सम्मुख बैठ गयी और उसकी ओर अत्यन्त दीन भाव से देख कर बोली, हाथ जोड़ कर कहती हूँ, चल कर चबेना कर लो। तुम्हारे इस तरह गुमसुम रहने से मेरा कलेजा दहल रहा है। तुमने क्या ठान रखी है, बोलते क्यों नहीं?

मनोहर—जा कर चुपके से बैठो। जब मुझे भूख लगेगी खा लूंगा।

विलासी—हाय राम। तुम क्या करने पर तुले हो?

मनोहर—करूंगा क्या? कुछ करने ही लायक होता तो आज यह बेइज्जती नहीं होती। जो कुछ तकदीर में है वह होगा।

यह कह कर वह फिर अपने काम में व्यस्त हो गया। कोई किसी से न बोला। बलराज टालमटोल करता रहा और बिलासी उदास बैठी कभी रोती और कभी अपने को कोसती; यहाँ तक कि सन्ध्या हो गयी। तीनों ने धान के गळे गाड़ी पर लादे और