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प्रेमाश्रम

जाने का इरादा है।

प्रेम---इरादा दो यही से लौट आने का है, आगे जैसी जरूरत हो। इधर आस-पास के देहातो में एक महीने में प्लेग का प्रकोप हो रहा है। कुछ दवाएँ साथ लेता आया हूँ। जरूरत होगी तो उसे बाँट दूंगा, कौन जाने मेरे ही हाथों दो-चार जाने बच जायें।

इसी प्रकार बातें करते हुए दोनो आदमी लखनपुर पहुँचे। गाँव खाली पड़ा था। लोग बागों में झोपडियां डाले पड़े हुए थे। इस छोटी-सी बस्ती में खूब चहल-पहल। उन दारुण दृश्यों का चिह्न कही न दिखायी देता था, जिनसे लोगों के हृदय विदीर्ण हो गये थे। छप्यरों के सामने महुए मुखाए जा रहे थे। चक्कियों की गरज, छाछ की तइप, ओखली और मूसल की धमक दम जीवन-मग्राम की सूचना दे रही थी जो प्लेग के भीषण हत्याकांड की भी परवाह न करता था। लड़के आमों पर ढेले चला रहे थे। कोई स्त्री बरतन मांजती थी, कोई पड़ोसी के घर से आग लिए आती थी। कोई आदमी निठल्ला बैठा नजर न आता था।

प्रेमशंकर तो बस्ती में आते ही बहली से उतर पड़े और एक झोपड़े के सान्ने खाट पर बैठ गये। ज्वालासिंह घोड़े में न उतरे। खाट पर बैठना अपमान की बात थी। जोर से बोले, कहाँ है मुखिया जा कर पटवारी को बुला लाये; हम मौका देखना चाहते है।

यह हुक्म सुनते ही कई आदमी झोपड़ो में मरीजों को छोड़-छोड़ कर निकल आये। चारों ओर भगदड़-भी पड़ गयी। दो-तीन आदमी चौपाल की तरफ कुर्सी लेने दौड़े, दो-तीन आदमी पटवारी की तलाश में भागे और गाँव के मान्य गण ज्वालासिंह को घेर कर खड़े हो गये। प्रेमशंकर की और किसी ने ध्यान भी न दिया। इतने में कादिर खाँ अपनी झोपड़ी से निकले और सुक्खू के कान में कुछ कहा। सुक्खू ने दुखरन भगत से कानाफूसी की, तब बिसेसर साह से सायें-सायें बातें हुईं, मानो लोग किसी महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार कर रहे हो। दस मिनट के बाद सुक्खू चौधरी एक थाल लिए हुए आये। उसमे अक्षत, दही और कुछ रुपये रखे हुए थे। गाँव के पुरोहित जी ने प्रेमशंकर के माथे पर दही-चावल का टीका लगाया और थाल उनके सामने रख दिया।

ज्वालासिंह कुर्सी पर बैठते हुए बोले, लीजिए, आपकी तो बोहनी हो गयी, घाटे में हम ही रहे। उस पर भी आप जमींदारी के पेशे की निन्दा करते हैं।

प्रेमशंकर ने कहा, देवी के नाम से ईंट-पत्थर भी तो पूजे जाते हैं।

कादिर खाँ-हम लोगों के धनभाग थे कि दोनों मालिकों के एक साथ दर्शन हो गये।

प्रेम-—यहाँ बीमारी कुछ कम हुई या अभी वही हाल है?

कादिर–सरकार, कुछ न पूछिए, कम तो न हुई और बढ़ती जाती है। कोई दिन नागा नहीं जाता कि एक न एक घर पर बिजली न गिरती हो। नदी यहाँ से छह कोस है। कभी-कभी तो दिन में दो-दो तीन-तीन बेर जाना पड़ता है। उस पर कभी