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प्रेमाश्रम

चौक कर उठ बैठी और बोली, क्या है? अभी तक सोये नहीं?

ज्ञान---आज नींद ही नहीं आती! बातें करने को जी चाहता है। राय साहब शायद अभी तक नहीं आये।

विद्या-वह बारह बजे के पहले कभी आते हैं कि आज ही आ जायेंगे। कभी कभी एक-दो बज जाते है।

ज्ञान–मुझे जरा सी झपकी आ गयी थी। क्या देखता हूँ कि गायत्री सामने खड़ी है, फूट-फूट कर रो रहीं है, औखें खुल गयी। तब से करवटै बदल रहा हूँ। उनकी चिट्ठियाँ तो तुम्हारे पास आती है न?

विद्या–हाँ, सप्ताह में एक चिट्ठी जरूर आती है, बल्कि मैं जवाब देने में पिछड़ जाती हूँ।

ज्ञान---कभी कुछ मेरा हालचाल भी पूछती है?

विद्या--वाह, ऐसा कोई पत्र नहीं होता जिसमें तुम्हारी क्षेम-कुशल न पूछती हो।

ज्ञान---बुलाती तो एक बार उनसे जा कर मिल आता।

विद्या--तुम जाओ तो वह तुम्हारी पूजा करे। तुमसे उन्हें बड़ा प्रेम है। ज्ञानशंकर को अब भी नीद नहीं आयीं, किन्तु सुख-स्वप्न देख रहे थे!



१५

प्रातः काल था। ज्ञानशंकर स्टेशन पर गाड़ी का इन्तजार कर रहे थे। अभी गाड़ी के आने के आध घंटे की देर थी। एक अँगरेजी पत्र ले कर पढ़ना चाहा पर उसमें जी न लगा। दवाओं के विज्ञापन अधिक मनोरजक थे। दस मिनट में उन्होंने सभी विज्ञापन पढ़ डाले। चित्त चंचल हो रहा था। बेकार बैठना मुश्किल था। इसके लिए बड़ी एकाग्रता की आवश्यकता होती है। आखिर खोचे की चाट खाने में उनके चित्त को शान्ति मिली। बेकारी में मन बहलाने का यही सबसे सुगम उपाय है।

जब वह फिर प्लेटफार्म पर आये तो सिगनल डाउन हो चुका था। ज्ञानशंकर का हृदय धड़कने लगा। गाड़ी आते ही पहले और दूसरे दरजे की गाड़ियों मे झांकने लगे, किन्तु प्रेमशंकर इन कमरों में न थे। तीसरे दर्जे की सिर्फ दो गाड़ियां थी। वह इन्हीं गाड़ियों के कमरे में बैठे हुए थे। ज्ञानशंकर को देखते ही दौड़ कर उनके गले लिपट गये। ज्ञानशंकर को इस समय अपने हृदय में आत्मबल और प्रेमभाव प्रवाहित होता जान पड़ता था। सच्चे भ्रातृ-स्नेह ने मनोमालिन्य को मिटा दिया। गला भर आया और अश्रूजल बहने लगा। दोनो भाई दो-तीन मिनट तक इसी भाँति रोते रहे। ज्ञानशंकर ने समझा था कि भाई साहब के साथ बहुत-सा आडम्बर होगा, ठाट-बाट के साथ आते होगे, पर उनके वस्त्र और सफर का सामान बहुत मामूली था। हाँ, उनका शरीर पहले से कही हृष्ट-पुष्ट था और यद्यपि वह ज्ञानशंकर से पाँच साल बड़े थे, पर देखने मे उनसे छोटे मालूम होते थे, और चेहरे पर स्वास्थ्य की कान्ति झलक रही थी।

ज्ञानशंकर अभी तक कुलियों को पुकार ही रहे थे कि प्रेमशंकर ने अपना सब सामान उठा लिया और बाहर चले। ज्ञानशंकर संकोच के मारे पीछे हट गये कि किसी