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चौदहवां अध्याय

श्रीशुकदेव बोले―हे राजा, ऐसे अघासुर को मार श्रीकृष्णचंद बछड़े घेर, सखाओं को साथ ले आगे चले। कितनी एक दूर जाय कदम की छाँह में खड़े हो बंशी बजाय सब ग्वालो को बुलाय कहा―भैया यह भली ठौर है, इसे छोड़ आगे कहाँ जाये, बैठो यही छाकें खाँय। सुनते ही विन्होने बछड़े तो चरने को हाँक दिये और आक, ढाक, बड़, कदम, कँवल के पात लाय, पत्तल दोने, बनाय, झाड़ बुहार श्रीकृष्ण के चारो ओर पाँति की पाँति बैठ गये, औ अपनी अपनी छाकें खोल खोल लगे आपस में परोसने।

जब परोस चुके तब श्रीकृष्णचंद ने सबके बीच खड़े हो पहले आप कौर उठाय खाने की आज्ञा दी। वे खाने लगे तिनमे मोर मुकुट धरे, बनमाले गरे, लकुट लिये, तृभंगी छब किये, पीतांबर पहने, पीतपट ओढे, हँस हँस श्रीकृष्ण भी अपनी छाक से सब को खिलाते थे, और एक एक के पनवारे से उठाय चाख चाख खट्टे मीठे तीते चरपरे का स्वाद कहते जाते थे औ विस मंडली में ऐसे सुहावने लगते थे कि जैसे तारों में चंद्रमा। तिस समै ब्रह्मा आदि सब देवता अपने अपने विमानो में बैठे, आकाश में ग्वाल-मंडली का सुख देख रहे थे- कि तिनमें से आय ब्रह्मा सब बछड़े चुराय ले गया, और यहाँ ग्वाल बालो ने खाते खाते चिंता कर श्रीकृष्ण से कहा―भैया, हम तो निचिताई से बैठे खाय रहे है, न जानिये बछड़े कहाँ निकल गये होयँगे।