यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ३५ )

जद श्रीकृष्ण बड़े भये तो एक दिन ग्वाल बाल साथ ले ब्रज में दधि माखन की चोरी को गये।

सूने घर में ढूँढे जाय, जो पावे सो देयँ लुटाय।

जिन्हें घर में सोते पावे तिनकी धरी ढकी दुहेड़ी उठा लावें। जहाँ छींके पर रक्बा देखे सहाँ पीढ़ी पर पटड़ा, पटड़े पै उलूखल धर साथी को खड़ा कर उसके ऊपर चढ़ उतार ले, कुछ खावे लुटावे औ लुढ़ाय दें। ऐसे गोपियों के घर घर नित चोरी कर आवे।

एक दिन सब ने मता किया और गेह में मोहन को आने दिया। जो घर भीतर पैठ चाहे कि माखन दहीं चुरावे तो जाय पकड़कर कहा―दिन दिन आते थे जिस ओर, अब कहाँ जावोगे माखनचोर। यो कह जब सब गोपी मिल कन्हैया को लिये जसोदा के पास उलाहना देने चलीं, तब श्रीकृष्ण ने ऐसा छल किया कि विसके लड़के का हाथ विसे पकड़ा दिया और आप दौड़ अपने ग्वाल बालो का संग लिया। वे चलीं चलीं नंदरानी के निकट आय, पाओं पड़ बोली―तुम बिलग न मानो तो हम कहै, जैसी कुछ उपाय कृष्ण ने ठानी है।

दूध दह्यो माखन मह्यो, बचे नहीं ब्रज माँझ।
ऐसी चोरी करतु है, फिरतु भोर अरु साँझ॥

जहाँ कही धरा ढेका पाते है तहाँ से निधड़क उठा लाते हैं, कुछ खाते हैं औ लुटाते हैं। जो कोई इनके मुख में दही लगी बतावे, विसे उलट कर कहते हैं—तूनेई तो लगाया है। इस भाँति नित चोरी कर आते थे, आज हमने पकड़ पाया सो तुम्हें दिखाने लाई हैं।

जसोदा बोलीं―वीर तुम किसका लड़की पकड़ लाईं, कल