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बड़े मुनीस होके उठे, सो तो उचित नहीं, इसका कारन कहो, जो मेरे मन का संदेह जाय । तब परासर मुनि बोले- राजा, जितने हम बड़े बड़े ऋषि हैं पर ज्ञान में शुक से छोटेही हैं, इसलिये सबने शुक को आदर मान किया । किसीने इस आस पर कि ये तारन-तरन हैं, क्योंकि जय से जन्म लिया है तबही से उदासी हो बनवास करते हैं, और राजा तेरा भी कोई बड़ा पुन्य उदै हुआ जो शुकदेव जी आये। ये सब धर्मों से उत्तम धर्म कहेंगे जिससे तू जन्म मरन से छूट भवसागर पार होगा । यह बचन सुन राजा परीक्षित ने शुकदेवजी को दंडवत कर पूछामहाराज, मुझे धर्म समझायके कहो, किस रीति से कर्म के फंदे से छूटूगा, सात दिन में क्या करूंगा । अधर्म है अपार, कैसे भवसागर हूँगा पार ।

श्रीशुकदेवजी बोले-राजा, तू थोड़े दिन मत समझ, मुक्ति तो होती है एकही घड़ी के ध्यान में, जैसे षष्टांगुल राजा को नारद मुनि ने ज्ञान बताया था और उसने दोही घड़ी में मुक्ति पाई थी । तुम्हे तो सात दिन बहुत हैं, जो एक चित हो करो ध्यान तो सब समझोगे अपने ही ज्ञान से कि क्या हैं देह, किसका है बास, कौन करता है इसमें प्रकाश 1 यह सुन राजा ने हरष के पूछामहाराज, सब धर्मों से उत्तम धर्म कौनसा है, सो कृपा कर कहो । तब शुकदेवजी बोले-राजा, जैसे सत्र धर्मों में बैष्णव धर्म बड़ा है, तैसे पुरानों में श्रीभागवत । जहाँ हरिभक्त यह् कथा सुनावे हैं तहाँही सब तीर्थ औ धर्म आवे हैं । जितने है पुरान पर नहीं है कोई भागवत के समान। इस कारन मैं तुझे बारह स्कंध महा पुरान सुनता हूं जो व्यास मुनि ने मुझे पढ़ाया है, तू श्रद्धा समेत