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समेत कुरक्षेत्र न्हाय आवे। अनिरुद्धजी ने कहा― जो आज्ञा। महाराज, एक अनिरुद्धजी को पुर की रखवाली के लिये छोड़ सूरसेन, बासुदेव, उद्धव, अक्रूर, कृतवर्मा आदि छोटे बड़े सब यदुबंसी अपनी अपनी स्त्रियों समेत राजा उग्रसेन के साथ कुरक्षेत्र चलने को उपस्थित हुए। जिस समैं कटक समेत राजा उग्रसेन ने पुरी के बाहर डेरा किया, उस काल सब जाय मिले। तिनके पीछे से श्रीकृष्णचंदजी भी भाई भौजाई को साथ ले, आठो पटरानी औ सोलह सहस्र आठ सौ रानी औ बेटों पोतो समेत जाय मिले। प्रभु के पहुँचते ही राजा उग्रसेन ने वहॉ से डेरा उठाया औ राजा इन्द्र की भॉति बड़ी धूमधाम से आगे को प्रस्थान किया।

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी बोले कि महाराज, कितने एक दिनो में चले चले श्रीकृष्णचंद सत्र जदुबंसियो समेत आनंद मंगल से कुरक्षेत्र में पहुंचे। वहाँ जाय पर्व में सब ने स्नान किया औ यथाशक्ति हर एक ने हाथी घोड़ा रथ पालकी वस्त्र शस्त्र रत्न आभूषन अन्न धन दान दिया। पुनि वहॉ सबों ने डेरे डाले। महाराज, श्रीकृष्णचंद औं बलरामजी के कुरक्षेत्र जाने का स्माचार पाय, चहुँ ओर के राजा कुटुम्ब समेत अपनी अपनी सब सेना ले ले वहॉ आय श्रीकृष्णचंद औ बलरामजी को मिलें। पुनि सब कौरव पाण्डव भी अपना अपना दल ले सकुटुंब वहॉ आय मिले उस काल कुंती औ द्रौपदी जदुबंसियो के रनवास में जाये सबसे मिली। आगे कुंती ने भाई के सनमुख जाये कहा कि भाई, मैं बड़ी अभागी, जिस दिन से मॉगी, उसी दिन से दुख उठाती हूँ। तुमने जब से ब्याह दी तब से मेरी सुध कभी न ली औ राम कृष्ण जो सब के है सुखदाई, उनको भी मेरी दया