पातस्याह ईरान की पातस्याह की फौज सुँ भाजि हुजूरि आयो, पंच हजारी भयो, मुलतान के सूबा जागीर में पायो। पातस्याही फौज जाय कंधार लीनी।
अमरसिंह कायस्थ
छत्रपुर के राजनगर के रहनेवाले थे और उसे राज्य के अधिष्ठाता कुँवर सोनूजू के दीवान थे। इनका जन्म सं॰ १७६३ में और मृत्यु सं॰ १८४० में हुई थी। राधाकृष्ण के भक्त थे। सुदामाचरित्र, रागभाला और अमरचंद्रिका नामक तीन पुस्तकें बनाईं। अंतिम पुस्तक बिहारी की सतसई की गद्य टीका है।
उदा॰―
'प्रथम मंगलाचरन—यह कवि की विनत जान प्रगटत अपनी अधमता अधिकाई धुनि आंन जितौ अधम तितनी बड़ी भव बाधा यह अर्थ तिहि हरिबे को चाहिये। कोऊ बड़ी समर्थ नर बाधा कै सुई हरत सुर बाधा ब्रह्मादि ब्रह्मादिक की बाध कौ हरत जु स्याम अगाध लखि राधा तन स्याम की बाधा रहत ना कोई याते मो बाधा हो।'
इन दोनों महाशयो ने नाभादास और प्रियादास के भक्तमाल पर टीका लिखी है। इस टीका की एक प्रति सं॰ १८२९ वि॰ की और दूसरी सं॰ १८४४ वि॰ की लिखी हुई है। प्रथम प्रति पर भक्तमालप्रसंग का नाम लिखा है और दूसरी पर भक्तिरसबोधिनी टीका।