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इहाँ आइ बृंदावन बास कियो अरु पोतो एक ले आई। ता पोतो को नाम मधुमंगल कहावै। सो मधुमंगल ग्वालन में गाई चरावै, श्रीकृष्ण को बार बार हँसावै, विनोद करै तातें अति प्रिय लागै। अरु नंद जसोदा जो मधु मंगल सो अति मोह करै। अरु नांदीमुखी नाम एक ब्राह्मणी सो पूर्णमासी जू की दहल करै। ते श्रीबृंदावन विषें रहें।

स्वामी ललितकिशोरी और ललितमोहिनी

ये दोनों गुरुशिष्य थे और निंबार्क संप्रदाय के अंतर्गत टट्टिन वाली शाखा के वैष्णव थे। इन दोनो महाशयों ने श्रीस्वामी महाराजजू की बचनिका नामक एक पुस्तक ४७ मुष्ठो में बनाई है। ये सं॰ १८०० के लगभग हुए थे। यह गद्य पुस्तक ब्रजभाषा में है।
उदा॰—

'वस्तु को दृष्टांत―मलयगिरि को समस्त बन बाकी पवन सों चंदन ह्वै जाय। वाके कई इच्छा नाही। बाँस और अरंड सुगंध न होय। सत्संग कुपात्र को असर न करै।'

अज्ञात

यह रचना मुगल बादशाह का सक्षिप्त इतिहास है, जो ब्रज भाषा गद्य में सं॰ १८२० के लगभग लिखा गया है। यह चालीस पृष्ठो में है।
उद॰―

राजा मानसिंह उड़ीसा सूबा में पातस्याह को सिकौ षुतबो चलायो। वहाँ के पठाणन कि पेसकस हजूरी ल्याये। कंधार को