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तुम वहाँ चलो तो भीमसेन को भी अपने साथ ले चलो। मेरी बुद्धि में आता है कि उसकी मीच भीमसेन के हाथ है।

इतनी कथा कह श्रीसुकदेवजी ने राजा परीक्षित से कहा कि राजा, जब ऊधोजी ने ये बात कही तभी श्रीकृष्णचदजी ने राजा उग्रसेन सूरसेन से बिदा हो सब जदुबंसियो से कहा कि हमारा कटक साजौ हम हस्तिनापुर को चलेगे। बात के सुनते ही सब जदुबंसी सेना साज ले आए औ प्रभु भी आठो पटरानियो समेत कटक के साथ हो लिए। महाराज, जिस काल श्रीकृष्णचंद कुटुव सहित सब सेना ले धौंसा दे द्वारका पुरी से हस्तिनापुर को चले, उस समय की शोभा कुछ बरनी नहीं जाती। आगे हाथियों का कोट, वाएँ दाहिने रथ घोड़ों की ओट, बीच मे रनवास औ पीछे सब सेना साथ लिए सबकी रक्षा किये श्रीकृष्णजी चले जाते थे। जहॉ डेरा होता था तहॉ के जोजन के बीच एक सुदर सुहावन नगर बन जाता था, देस देस के नरेस भय खाय आय आय भेट कर भेट धरते थे औ प्रभु विन्हे भयातुर देख तिनका सब भॉति समाधान करते थे।

निदान इसी धूमधाम से चले चले हरि सब समेत हस्तिना पुर के निकट पहुँँचे। इसमें किसी ने राजा युधिष्ठिर से जाय कहा कि महाराज, कोई नृपति अति सेना ले बड़ी भीड़ भाड़ से आपके देस पर चढ़ आया है, आप बेग उसे देखिये, नहीं तो उसे यहॉ पहुँचा जानिये। महाराज, इस बात के सुनते ही राजा युधिष्ठिर ने अति भय खाय, अपने नकुल सहदेव दोनो छोटे भाइयों को यह कह प्रभु के सनमुख भेजा कि तुम देखि आओ कि कौन राजा चढ़ा आता है। राजी की आज्ञा पातेही वे चले गये और