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औ क्या करते हैं। बहुत दिन से हमने उनके कुछ समाचार नहीं पाए, इससे हमारा चित उन्हीं में लगा है। नारदजी बोले कि महाराज, मै विन्हीं के पास से आया हूँ, हैं तो कुशल क्षेम से पर इन दिनो राजसूय यज्ञ करने के लिए निपट भावित हो रहे है औ घड़ी घड़ी यह कहते हैं कि बिना श्रीकृष्णचंद की सहायता के हमारा यज्ञ पूरा न होगा, इससे महाराज, मेरा कहा मानिये तो

पहिले उनकौ यज्ञ सँवारौ। पाछे अनत कहूँ पग धारी॥

महाराज, इतनी बात नारदजी के मुख से सुनते ही प्रभु ने ऊधोजी को बुलाय के कहा―

अधो तुम हौ सखा हमारे। मन ऑखन ते कबहुँ न न्यारे॥
दुहूँ ओर की भारी भीर। पहले कहॉ चलैं कहौ बीर॥
उत राजा संकट में भारी। दुख पावत किये आस हमारी॥
इत पंडुनि मिछ यह रचायौ। ऐसे कहि प्रभु बचन सुनायौ॥