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उद॰―

'प्रंय की आदि इष्ट देवता हैं ताको स्वरूप दिखावत है अरु ता ग्रंथ तीनि विघन तो सिधि करिबै को हिरदै मॉग ताकी स्वरूप तवन कारकै नमस्कार करतु है।'

महाराज जसवंतसिंह

मारवाड़-नरेश महाराज गजसिंह के द्वितीय पुत्र थे। इनका जन्म सं॰ १६८२ में और मृत्यु संवत् १७३८ वि॰ में हुई थी। यह सं॰ १६९५ में गद्दी पर बैठे, पर मुग़ल सम्राट शाहजहाँ और औरंगजेब के लिए जन्म भर इन्हें युद्ध करते ही बीता। ये स्वदेश में छुट्टी लेकर कुछ ही दिन रह सके थे। इतना कम समय मिलने पर भी इन्होंने कई पुस्तकें रचीं और अपने आश्रय में कितनी ही पुस्तकें लिखवाईं। यह अपने ग्रंथ भाषाभूषण के कारण आजतक भाषालंकारों के आचार्य माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त अपरोक्षसिद्धांत अनुभवकाश, आनंदविलास, सिद्धांतबोध, सिद्धांतसार और प्रबोध चंद्रोदयनाटक नामक पुस्तके लिखी है। अंतिम पुस्तक महाराज जसवंतसिह की गद्य रचना है।
उदो॰―

'यह कहिके चले तितनै सूत्रधार आइ आसीबद देकै बोल्यो।'

जगज्ञी चारण

इन्होंने रनमहेशदासोत वचत्तिका नामक ग्रंथ में रतलाम के राजा रत्नसिंह महेशदासोत की उस वीरता का परिचय दिया है जो उन्होंने धर्मतपुर के युद्ध में प्रदर्शित की थी। यह युद्ध महाराज जसवंतसिह और औरंगजेब के बीच सं॰ १७१५ वि॰ में हुआ था, जिस समय यही पुस्तक बनी थी।