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औ कलिंग को पछाड़ मारे घूसो के उसके दाँत उखाड़ डाले और कहा कि तू भी मुँह पसारके हँसा था। आगे सब राजाओ को मार भगाय, बलरामजी ने जनवासे में श्रीकृष्णचंदजी के पास आय, वहाँ का सब ब्योरा कह सुनाया।

बात के सुनतेही हरि ने सब समेत वहाँ से प्रस्थान किया और चले चले आनंद मंगल से द्वारका मे आन पहुँचे। इनके आतेही सारे नगर में सुख छाय गया, घर घर मंगलाचार होने लगा। श्रीकृष्णजी औ बलदेवजी ने उग्रसेन राजा के सनमुख जाय हाथ जोड़ कहा-महाराज, आपके पुन्य प्रताप से अनरुद्ध को ध्याह लाए औ महादुष्ट रुक्म को मारि आए।