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गरुड़ औ सुदरसन चक्र को आज्ञा की। विन्होने पल भर में ढाय, बुझाय, बहाय, थाम अच्छा पंथ बनाय दिया।

जो हरि आगे बढ़ नगर में जाने लगे तो गढ़ के रखवाले दैत्य लड़ने को चढ़ आए, प्रभु ने तिन्हें गदा से सहजही मार गिराए । विनके मरने का समाचार पाय मुर नाम राक्षस पाँच सीसवाला, जो उस पुरगढ़ का रलवाला था, सो अति क्रोध कर त्रिशूल हाथ में ले श्रीकृष्णजी पर चढ़ आया औ लगा आँखें लाल लाल कर दाँत पीस पीस कहने कि

मोर्ते बली कौन जग और। वाहि देखिहौ मै या ठौर॥

महाराज, इतना कह मुर दैत्य श्रीकृष्णचंद पर यों दपटा कि जो गरुड़ सर्प पर झपटे। आगे उसने त्रिशूल चलाया, सो प्रभु ने चक्र से काट गिराया। फिर खिजलाय मुर ने जितने शस्त्र हरि पर घाले, तितने प्रभु ने सहजही काट डाले। पुनि वह हकबकाय दौड़कर प्रभु से प्राय लिपटा औ मल्लयुद्ध करने लगा। निदान कितनी एक बेर मे युद्ध करते करते, श्रीकृष्णजी ने सतिभामाजी को महा भयमान जान सुदरसन चक्र से उसके पाँचों सिर काट डाले। धड़ से सिर गिरतेही धमका सुन भौमासुर बोला कि यह अति शब्द काहे का हुआ? इस बीच किसी ने जा सुनाया कि महाराज, श्रीकृष्ण ने आय मुर दैत्य को मार डाला।

इतनी बात के सुनतेही प्रथम तो भौमासुर ने अति खेद किया, पीछे अपने सेनापति को युद्ध करने का आयसु दिया। वह सब कटक साज लड़ने को गढ़ के द्वार पर जा उपस्थित हुआ और विसके पीछे अपने पिता का मरना सुन मुर के सात बेटे जो अति बलवान और बड़े जोधा थे, सो भी अनेक अनेक प्रकार के

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