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सारे संसार में फिर आई पर खाने को कहीं न पाया, अब एक पास आप की है जो आज्ञा पाऊँ, तो बन जंगल जाय खाऊँ। प्रभु बोले-अच्छा जाय खा। फिर आग ने कहा-कृपानाय मै अकेली बन में नहीं जा सकती, जो जाऊँ तो इंद्र आय मुझे बुझाय देगा। यह बात सुन श्रीकृष्णजी ने अर्जुन से कहा कि बंधु तुम जाय अग्नि को चराय आओ. यह बहुत दिन से भूखी मरती है।

महाराज, श्रीकृष्णचंद्रजी के मुख सें इतनी बात के निकलतेही अर्जुन धनुष बान ले अग्नि के साथ हुए, और आग बन मे जाय भड़की और लगे आम, इमली, बड़, पीपल पाकड़, ताल, तमाल, महुआ, जामन, खिरनी, कचनार, दाख, चिरोजी, कौला नीबू, बेर आदि सब वृक्ष जलने और

पटकै कांस बांस अति चटके। बन के जीव फिरें मग भटके॥

जिधर देखिये तिधर सारे बन मे आग हूहू कर जलती है औ धुआँ मंडलाय आकाश को गया। विस धुएँ को देख इद्र ने मेघपति को बुलाय के कहा कि तुम जाय अति बरषा कर अग्नि को बुझाय, बन वहाँ के पशु पक्षी जीव जंतु को बचाओ। इतनी आज्ञा पाय मेघपति दल बादल साथ ले वहाँ आय, घहराय जो बरसने को हुआ तो अर्जुन ने ऐसे पवनबान मारे कि बादल राई काई हो यो उड़ गये कि जैसे रुई के पहल पौन के झोके मे उड़ जायँ न किसी ने आते देखे न जाते जो आए तो सहजही बिलाय गये और आग बन झाड़ खंड जलाती जलाती कहाँ आई कि जहाँ भय नाम असुर का मंदिर था। अग्नि को अति रिस भरी आती देख मय महाभय खाय नंगे पाओ गले में कपड़ा डाले हाथ बांधे, मंदिर से निकल सनमुख आय खड़ा हुआ, औ अष्टांग